आपका जन्म 3 मार्च 1902 को गांव चिखली जिला बुलढाणा बरार महाराष्ट्र में हुआ था।
आप बाल गंगाधर तिलक से बहुत प्रभावित थे। आपने युवा अवस्था में संयास ले लिया था।तिलकजी ने आपको एक उदासी साधु संप्रदाय का सचिव बना दिया।
अब आप स्वामी गोविंद प्रकाश के नाम से सन्यासी बन कर रह रहे थे।
उन्हीं दिनों चंद्रशेखर आजाद भी एक महंत के शिष्य बने हुए , महंत के मरने का इंतजार कर रहे थे । यह दल की योजना के अंतर्गत था ताकि महंत के मरने पर उसकी संपत्ति क्रांतिकारी दल के काम आ सके।
एक दिन चंद्रशेखर आजाद की स्वामी गोविंद प्रकाश से मुलाकात हुई । दोनों एक दूसरे से पहले परिचित थे।
बातचीत के दौरान चंद्रशेखर आजाद ने दल की योजना अनुसार महंत का शिष्य बनने की कहानी सुनाते हुए बताया महंत बलवान है मरनेवाला नहीं इसलिए अब वो वापिस जाएंगे ।
बातचीत में स्वामी गोविंद प्रकाश ने भी सन्यासियों के चरित्रहीन होने के बारे में बताया।
आज़ाद ने देशभक्ति के लिए प्रेरित किया तो स्वामी जी का ह्रदय परिवर्तित हो गया ।
अब दो सन्यासियों के स्थान दो क्रांतिकारीयों ने लिए व क्रांतिकारी रामकृष्ण खत्री बन गए क्रांतिकारी दल हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य ।
आपको मराठी भाषा का ज्ञान था इसलिए दल के गठन हेतु बिस्मिल ने आपको उत्तरप्रदेश से मध्यप्रदेश भेज दिया।
काकोरी एक्शन के बाद जब पूरे हिन्दुस्तान से गिरफ़्तारियाँ हुईं तो आपको को पूना में गिरफ्तार कर लखनऊ जेल में अन्य क्रान्तिकारियों के साथ रखा गया। आप वास्तव में काकोरी एक्शन मर शामिल नहीं थे पर आपको भी आरोपित कर मुकदमा चलाया गया।
आपको मध्य भारत और महाराष्ट्र में हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का विस्तार करने का दोषी माना गया व दस वर्ष की सजा सुनाई गई।
सजा काटकर जेल से छुटने के बाद आपने क्रांतिवीर राजकुमार सिन्हा के घर का प्रबन्ध किया
फिर योगेश चन्द्र चटर्जी की रिहाई के लिये प्रयास किया।
उसके बाद सभी राजनीतिक कैदियों को जेल से छुड़ाने के लिये आन्दोलन किया।
आपने एक पुस्तक “शहीदों की छाया “में भी प्रकाशित की।
शत शत नमन क्रांतिवीरों को