भारतीय सशस्त्र स्वतंत्रता संग्राम में शचींद्र नाथ सान्याल की विशेष भूमिका रही है ।
सान्याल ने देशभर के क्रांतिकारियों को संगठित किया।
सान्याल को रासबिहारी बोस का लेफ्टिनेंट माना जाता था।
आपका जन्म 1893 में वाराणसी में हुआ। आपने बनारस में अपने अध्ययनकाल में ही काशी में प्रथम क्रांतिकारी दल का गठन 1908 में किया।
क्रांतिकारी रमेशआचार्य के प्रयत्नों से सन 1909 में कलकत्ता दल के योगेश चटर्जी व सान्याल के दल का एकीकरण कर
“हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन “की स्थापना की ।
इस दल का इलाहाबाद ,बनारस, कानपुर ,फतेहगढ़ ,आगरा, मैनपुरी, एटा ,इटावा , शाहजहांपुर व मेरठ जिलों में प्रभाव था।
पंडित राम प्रसाद बिस्मिल भी इसी दल के सदस्य थे ।
दल को शस्त्रों की आवश्यकता होती थी और शस्त्रों के लिए धन की परन्तु क्रांतिकारीयों के धन अर्जित करने का कोई साधन नहीं होता था।
इसलिए भारतीय क्रांतिकारियों ने आयरलैंड के क्रांतिकारियों की तरह आम गरीब जनता का खून चूसने वाले साहूकारों, बड़े जमीदारों को लूट कर क्रांति के लिए हथियार खरीदने हेतु धन अर्जित करना शुरू कर दिया।
इसी क्रम में इस दल ने युक्त प्रांत के बिचपुरी ,बसमेंली, द्वारकापुरी आदि में डाके डाले थे।
विख्यात काकोरी एक्शन भी इसी दल द्वारा लिया गया था।
प्रथम महायुद्ध के समय रासबिहारी बॉस के नेतृत्व में 21 फ़रवरी 1915 को समस्त देश की छावनीयों में भारतीय फौजियों के साथ मिलकर क्रांति करने का आह्वान किया गया था।
जो मुखबिर द्वारा पुलिस को सूचना दे देने के कारण सफल नहीं हो सका।
इसमें शचिंद्र सान्याल ने अहम भूमिका निभाई थी।
लाहौर एक्शन के पूरक मुकदमा के रूप में शचींद्र पर बनारस एक्शन के लिए मुकदमा बना जिसमें दिनाँक 6 जून 1915 को गिरफ्तार किया गया।
इस मुकदमा में 14 फ़रवरी 1916 को उम्रकैद कालापानी की सजा दी गई व उनकी समस्त सम्पति जब्त करली गई।
सरकार द्वारा की गई आम माफ़ी से शचींद्र 1920 में रिहा हुए।
जेल से रिहा होने के बाद शचींद्र गांधीजी वह अन्य कांग्रेसी नेताओं से मुलाकात की परंतु कांग्रेसियों ने शचिंद्र को क्रांतिकारी के रूप में ज्यादा महत्व नहीं दिया ।
शचिंद्र ने कांग्रेसी नेताओं को एक ज्ञापन तैयार करके दिया था।
जिस पर कांग्रेस महासमिति के अनेक सदस्यों ने हस्ताक्षर किए।
इसमें कांग्रेस का ध्येय पूर्ण स्वतंत्रता लिए जाने व
एशियाई राष्ट्रों के संघ के निर्माण के संबंध में सुझाव थे।
कालांतर में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का पुनर्गठन हुआ। जिसमें भगत सिंह और उनके साथी भी शामिल हुए ।
सान्याल के नेतृत्व में दल का संविधान तैयार किया, जिसमे दल का लक्ष्य सुसंगठित और सशस्त्र क्रांति द्वारा भारतीय लोकतंत्र संघ की स्थापना करना बताया।
संविधान में स्पष्ट किया गया कि उन कुंठित व्यवस्थाओं का अंत कर दिया जाएगा ,
जिनसे किसी एक मनुष्य द्वारा दूसरे का शोषण हो सकने का अवसर मिल सकता है।
शचींद्र बंगाल आर्डिनेंस के अधीन गिरफ्तार कर लिए गए।
शचींद्र ने 1925 “The Revolutionary” सम्पूर्ण देश मे एक साथ बंटवाया था ।
इस पर्चे के लेखक और प्रकाशक के रूप में बाँकुड़ा में शचींद्र पर मुकदमा चला और राजद्रोह के अपराध में उन्हें दो वर्ष के कारावास का दंड मिला।
कैद की हालत में ही वे काकोरी षडयत्रं केस में शामिल किए गए और संगठन के प्रमुख नेता के रूप में उन्हें पुन: अप्रैल, 1927 में आजन्म कारावास की सजा दी गई।
1937 में संयुक्त प्रदेश में कांग्रेस मंत्रिमंडल की स्थापना के बाद अन्य क्रांतिकारियों के साथ वे रिहा किए गए।
रिहा होने पर कुछ दिनों वे कांग्रेस के प्रतिनिधि थे, परंतु बाद में वे फारवर्ड ब्लाक में शामिल हुए।
इसी समय काशी में उन्होंने ‘अग्रगामी’ नाम से एक दैनिक पत्र निकाला। स्वयं इस पत्र के संपादक थे।
द्वितीय महायुद्ध शुरू होने के समय 1941 मे शचींद्र को जापान से संबंध रखने के आरोप में पुन: नजरबंद कर राजस्थान के देवली शिविर में भेज दिया गया।
वहाँ तपेदिक रोग से ग्रस्त होने पर गोरखपुर जेल में भेजा गया ।
गोरखपुर जेल में ही शचींद्र दा का 7 फ़रवरी 1942 को देहांत हो गया।
शचींद्र दा ने अपनी आत्मकथा “बंदी जीवन” में अपने क्रांतिकारी जीवन के संघर्ष व क्रांतिकारियों द्वारा अपने घर परिवार को छोड़ जो कष्ट झेले उनका अच्छे से उल्लेख किया है ।
बंदी जीवन पढ़कर ऐसा महसूस होता है कि जो क्रांतिकारी देश की आजादी के लिए अपने प्राणों को दांव पर लगाए हुए थे, को उस समय भी राजनेताओं द्वारा सम्मान नहीं दिया गया।
नमन क्रांतिवीरों को