:-  लोकमान्य तिलक -:


प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 के पश्चात भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शिथिलता आ गई थी।
आजादी का संघर्ष कांग्रेसजन के हाथो में था, जो नरमी का रुख अपनाए हुए थे।
बाल गंगाधर तिलक  इस याचक नीति के पक्ष में नहीं थे ।
तिलकजी के विचारों का भारतीय युवाओं पर गहरा असर पड़ा और युवा सर पर क़फ़न बांधे आजादी की लड़ाई में उतरे ।
तिलक जी को आधुनिक भारत के स्वतंत्रता संग्राम का जनक व “भारतीय अशान्ति के पिता” कहा माना जाता है।
तिलक जी का जन्म 23 जुलाई 1856 को कांकण, जिला रत्नागिरी , महाराष्ट्र में हुआ था।
तिलक जी की शिक्षा डेक्कन कॉलेज पुणे से हुई।
सन 1876 में तिलकजी ने कानून की परीक्षा पास की।
तिलक जी को गणित ,संस्कृत, इतिहास ,ज्योतिष व शरीर रचना शास्त्र का अच्छा ज्ञान था।
तिलक जी का मानना था-

स्वाधीनता किसी राष्ट्र पर ऊपर से नहीं उतरती बल्कि अनिच्छुक हाथों से छिनने के लिए राष्ट्र को ऊपर उठना होता है।
तिलक जी ने जन भीरुता को ललकारा। संस्कृति में हुए प्रदूषण के विरुद्ध आह्वान किया व लाठी क्लब संचालित किये ।

आपने शिक्षा के महत्व को समझा व समझाया ।

आपने अंग्रेजों की शिक्षा प्रणाली को नौकरशाही तैयार करने की कार्यशाला बताया।

तिलक जी ने 1886 में न्यू इंग्लिश स्कूल की स्थापना की
डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी व फर्गुसन कॉलेज की स्थापना की।
तिलक जी की प्रेस का नाम आर्यभूषण था।
आपने  दिनांक 2 जनवरी 1881 से  समाचार पत्र “मराठा “अंग्रेजी में व दिनाँक 1 जनवरी 1982 से “केसरी “ समाचार पत्र मराठी में शुरू किया।

इन समाचार पत्रों में के माध्यम से तिलक जी ने भारतीय राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम उर्जा दी।
केसरी में “देश का दुर्भाग्य” नामक शीर्षक से लेख लिखा जिसमें ब्रिटिश सरकार की नीतियों का विरोध किया।  इस उन्हें राजद्रोह के अभियोग में 27 जुलाई 1897 को गिरफ्तार कर लिया गया।
उन्हें 6 वर्ष के कठोर कारावास के अंतर्गत माण्डले (बर्मा) जेल में बन्द कर दिया गया।
दामोदर चापेकर ने ” शिवाजी की पुकार “ शीर्षक से एक कविता छपवाई  जिसका अर्थ था
” शिवाजी कहते हैं कि मैंने दुष्टों का संहार कर भूमिका भार हल्का किया देश उद्वार कर स्वराज्य स्थापना तथा धर्म रक्षण किया ।”
चापेकर ने ललकारते हुए लिखा अब अवसर देख म्लेच्छ रेलगाड़ियों से स्त्रियों को घसीट कर बेइज्जत करते हैं।
हे कायरों तुम लोग कैसे सहन करते हो ? इसके विरूद्ध आवाज उठाओ ।
इस कविता के प्रकाशन पर बाल गंगाधर तिलक पर मुकदमा चलाया गया 14 सितम्बर1897 को तिलक जी को  डेढ़ वर्ष की सजा दी गई

लोकमान्य तिलक ने 1908 में क्रान्तिकारी प्रफुल्ल चाकी और क्रान्तिकारी खुदीराम बोस के बम हमले का समर्थन किया।
जिसके लिये तिलक जी पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया व  उन्हें बर्मा  मांडले  जेल में भेज दिया गया।

Jजाए ।”


शिवाजी की जयंती पर 12 जून को विठ्ठल मंदिर पर आयोजित एक सभा में बाल गंगाधर तिलक ने रैण्ड की भर्त्सना करते हए पुणे  के युवाओं को ललकारते हुए कहा
‘ “”पुणे के लोगों में पुरुषत्व है ही नहीं, अन्यथा क्या मजाल हमारे घरों में घुस जाएं

यह बात चापेकर बंधुओं के शरीर में  तीर की तरह लगी और उनकी आत्माओं को झीझोड़कर रख दिया । जिन्होंने हीरक जयंती 22 जून 1897 को    रैण्ड का वध कर दिया।

तिलक जी ने महाराष्ट्र में गणेश उत्सव तथा शिवाजी उत्सव मनाना प्रारंभ किया।
इन त्योहारों के माध्यम से जनता में देशप्रेम और अंग्रेजों के अन्यायों के विरुद्ध संघर्ष का साहस भरा गया।

आपका मराठी भाषा में दिया गया नारा “स्वराज्य हा माझा जन्मसिद्ध हक्क आहे आणि तो मी मिळवणारच”
(स्वराज यह मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूँगा) बहुत प्रसिद्ध हुआ।

1907 में कांग्रेस गरम दल और नरम दल में विभाजित हो गयी।

गरम दल में लोकमान्य तिलक के साथ लाला लाजपत राय और श्री बिपिन चन्द्र पाल शामिल थे।

इन तीनों को लाल-बाल-पाल के नाम से जाना जाने लगा।

तिलकजी ने 1916 में एनी बेसेंट और मुहम्मद अली जिन्ना के साथ अखिल भारतीय होम रूल लीग की स्थापना की।

बाल गंगाधर तिलक की पत्नी के स्वर्गवास के समय जेल में होने के कारण अपनी  पत्नी के अंतिम दर्शन भी नहीं कर सके।

तिलक जी द्वारा  मांडले जेल में लिखी गयी टीका “गीता-रहस्य” महत्वपूर्ण है इसका कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है।
इसके अलावा तिलक जी ने

The Orion
The Arctic Home in the Vedas भी लिखी।

तिलकजी का 2 अगस्त 1920 को बम्बई में स्वर्गवास हुआ।

शत शत नमन

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