:-रासबिहारी बॉस -:

आपका जन्म 25 मई 1886 को गांव सुबालदह , बर्धमान , पश्चिम बंगाल में हुआ।

आपकी  शिक्षा चन्दननगर में हुई। आपने पहले फोर्ट विलियम कॉलेज में  फिर  देहरादून जंगल विभाग में नोकरी की।

प्रारंभ में आप “चंदननगर अनुशीलन समिति” के सदस्य थे। कालांतर में आपका संपर्क  युगांतर दल के क्रांतिकारी अमरेन्द्र चटर्जी से हुआ और आप युगांतर दल व जतिन बाघा के साथ जुड़ गए।

अब आपका संबंध संयुक्त प्रान्त, वर्तमान उत्तर प्रदेश और पंजाब के प्रमुख क्रांतिकारीयों से हो गया।

शचींद्र सान्याल 1912 में काशी में  क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रूप से काम कर रहे थे।
आपने  सान्याल को  संगठन मजबूती हेतु पंजाब भेजा।

आपकी ही योजना के अनुसार “लिबर्टी ‘ नाम से एक  क्रांतिकारी पर्चा लाहौर से कोलकाता तक फौजी छावनियों व आम जनता में बंटवाया।

आपकी ही योजना के अनुसार दिल्ली चांदनी चौक में वायसराय लॉर्ड हार्डिंग का वध करने हेतु उसकी सवारी पर दिनांक 13 दिसंबर 1912 को बम डाला गया।
व पंजाब में सिविल सर्वेंट्स को मारने हेतु लॉरेंस गार्डन में बम्ब विस्फोट किया गया।

आपने प्रथम विश्व युद्ध के समय भारतीय फौजियों से सम्पर्क कर समस्त देश मे एक साथ विप्लव कर अंग्रेजों को मार भागने की योजना बनाई।

उस समय भारत में अंग्रेजों के पास मात्र  15000 सैनिक थे । समस्त सैनिकों को विदेशों में अलग-अलग मोर्चों पर लड़ने हेतु भेज दिया गया था।

आपकी योजना के अनुसार  21 फरवरी 1915 को विप्लव करना था।
सारी तैयारियां बहुत अच्छी तरह हुई । जर्मनी से तीन जहाजों में हथियार मंगवाए गए।

करतारसिंह सराबा व गदर पार्टी के लगभग 8000 क्रांतिकारी हथियारों सहित इस विप्लव में शामिल विदेशों से भारत आए।

दुर्भाग्य से पुलिस ने  कृपाल सिंह नामक एक गद्दार को क्रांतिकारी के दल में शामिल करा दिया।इस गदार ने सारी खबरें पुलिस को दे दी।
आपने तिथि दो दिन पहले की जिसका जिक्र भी सराबा जी कृपाल से कर दिया क्योंकि सराबा को इस गदार का ज्ञान नहीं था।

देश मे पुलिस व फ़ौज चौकन्ने हो गए गिरफ्तारियां हो गई।
उधर बर्लिन में भी किसी गदार ने बर्लिन से आने वाले हथियारों के बारे में अंग्रेजों को बता दिया।

सारे जहाज रास्ते में ही पकड़ लिए गए।
जतिन बाघा भी मुठभेड़ में शहीद हो गए।

रासबिहारी की पीछे जासूस लग गए ।आप छिपते हुए  जून 1915 में  राजा पी एन टैगोर के नाम से  जासूसों को धोखा देकर जापान पहुंचे ।

जापान से संघाई गए और चीन के एजेंटों के माध्यम से जर्मनी के लोगों से सम्पर्क किया।

अब आप टोक्यो पहुंचे वहाँ आपकी मुलाकात लाला लाजपत राय से हुई ।
आपने 15 नवंबर 1915 को टोक्यो में एक विशाल सभा का आयोजन कर भारत की आजादी पर भाषण दिया तब अंग्रेजों को पता चल गया कि

पी एन टैगोर आप ही है

आप जापान में अकेले ही रह गए थे । जापान सरकार ने ब्रिटेन के दबाव के कारण सफलता आदेश जारी कर दिए थे कि 2 दिसंबर 1915 तक यदि आप जापान  नहीं छोड़ते हैं, तो आपको ब्रिटिश सरकार को सौंप दिया जाएगा।

आपने जापान के राष्ट्रवादी  नेता मित्सुरी तोयाम से सम्पर्क किया।

ऐसे समय में आप को एक बड़े होटल के स्वामी एजो सौमा ने अपने होटल में छिपा दिया।

मित्सुरी तोयाम के प्रयत्नों पर  1916 में  जापान सरकार ने अपना आदेश वापस लिया गया।

मित्सुरी तोयाम के सुझाव पर होटल मालिक एजो सौमा ने अपनी पुत्री तोशिको का विवाह रासबिहारी बोस से किया ।

आपने जापान में 1923 में “न्यू एशिया” नामक पत्र प्रारंभ किया।

आपने जापानी भाषा में 14 पुस्तकें भी लिखी।
भारतीयों को संगठित किया तथा ‘रामायण’ का जापानी भाषा में अनुवाद किया।

आपने भारतीय क्रांतिकारियों के रहने की व्यवस्था अपने  होटल में की।

वहां आपने हर वर्ष जलियांवाला बाग दिवस मनाना शुरू किया।
आपने 1926 में पॉन एशियन लीग की स्थापना की।
जिसके अध्यक्ष  आप बने ।
इस संस्था का उद्देश्य भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को तेज करना था।

आपने दो बार कोरिया की यात्रा की ।
ब्रिटिश सरकार अब भी उनके पीछे लगी हुई थी

और वह जापान सरकार से उनके प्रत्यर्पण की माँग कर रही थी,

इसलिए वह लगभग एक साल तक अपनी पहचान और आवास बदलते रहे।
आपको 1923 में  आपको जापान की नागरिकता मिली।


सन1937 में आपने ‘इंडियन इंडिपेंडेंस लीग” की स्थापना की।

सन 1939 में जब दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो गया व 8 दिसंबर 1941 को जब जापान ने पर्ल हार्वर पर आक्रमण करके मित्र राष्ट्रों के खिलाफ़ युद्ध की घोषणा की।

इस मौके का फायदा उठाने हेतु
आपने टोक्यो में भारतीयों का एक सम्मेलन बुलाया और उन्हें समझाया कि अब देश को आजाद कराने का अच्छा मौका है ।
इस घोषणा के  28 मार्च 1942  को “इंडियन इंडिपेंडेंस लीग ” की स्थापना की जिसने  भारत को एक स्वतंत्रत राष्ट्र घोषित कर दिया।

जापान के मंत्रिमंडल ने लीग की वैधता को स्वीकार करते हुए सरकार को मान्यता प्रदान कर दी।
आपको उत्तराधिकारी की आवश्यकता थी ।

आपने वीर सावरकर के द्वारा सुभाष चंद्र बोस को अपना संदेश भेजा।

22 जून 1942 को  बैंकाक में लीग का दूसरा सम्मेलन बुलाया, जिसमें सुभाष चंद्र बोस को लीग में शामिल होने और उसका अध्यक्ष बनने के लिए आमन्त्रित करने का प्रस्ताव पारित किया गया।

आपने जापान द्वारा दक्षिणी पूर्वी एशिया मलय व बर्मा में बंदी बनाए गए भारतीय सैनिकों को मुक्त करवा करआजाद हिंद सेना का गठन किया।

आपने 4 जुलाई 1946 को आजाद हिंद सेना  की कमान व सुभाष चंद्र बोस को सम्भला दी।

दिनाँक  21 अक्टूबर 1946 को आजाद हिंद सरकार की विधिवत स्थापना हुई  जिसे 9 देशों ने मान्यता दी।

आप इस सरकार के सर्वोच्च सलाहकार थे ।
जापान ने आपके प्रयत्नों से ही अंडमान व निकोबार द्वीप आज़ाद हिंद सरकार को सौंपे थे।

जापान में आपका स्वर्गवास दिनाँक 22 जनवरी 1945 को हुआ।

जापान सरकार ने आपके अंतिम संस्कार हेतु शाही सवारी का प्रबंध किया ।
आपको जापान के सर्वोच्च सम्मान सेकंड क्रोस ऑर्डर _ राइजिंग सन के ख़िताब से सुशोभित किया गय

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