महान क्रांतिवीर यतीन्द्रनाथ मुखर्जी

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अजेय योद्धाओं में से एक योद्धा यतिन्द्रनाथ उर्फ बाघा जतिन थे जिन्हें बंगाल के “चन्द्रशेखर आजाद“ के नाम से संबोधित किया जाता है।
वीर जतिन का जन्म 7 दिसम्बर 1879 कायाग्राम “जैसोर“ (वर्तमान बंग्लादेश) में एक ब्राहम्ण परिवार में हुआ था। आपके पिताश्री उमेशचन्द्र मुकर्जी थे। पांच वर्ष की अल्पआयु सर पर से पिता का साया उठ गया था। आपकी महान माताश्री ने आपमें देशभक्ति का मंत्र फूंका।
वीर जतिन ने इन्टरेंस पास कर कलकत्ता सचिवालय में स्टेनोग्राफर पद पर कार्य किया। वीर जतिन हृष्ट-पुष्ट और शौर्यवान पुरूष थे। जब उनकी अवस्था 27 वर्ष की थी तो नदिया जिले के एक जंगल में एक चीते से उनका मुकाबला हो गया। उसे आपने हँसिये से मार गिराया, तब से लोग आपको ’बाघा यतीन्द्र’ के नाम से पुकारने लगे थे।
वीर जतिन लाठी, तलवार, घुड़सवारी व कुश्ती के महारथी थे। आप नियमित रूप से गीता पाठ भी करते थे। कलकत्ता के आस-पास आपकी विशेष पहचान थी।
बाघा जतिन ने “पश्चिमी बंगाल अनुशीलन समिति“ की स्थापना की थी जिसे पुलिन बिहारी की अनुशीलन समिति में विलय किया गया था।
क्रांतिवीर ने 1905 में दार्जलिंग मेल में 4 सिपाहियों को पीट दिया था। बंग-भंग के बाद जतिन बाघा ने नौकरी छोड़ दी और क्रांतिकारी संगठन में जुड़ गये। सन् 1910 ई॰ में वे हावड़ा षड्यन्त्र केस में पकड़ लिये गये किन्तु एक वर्ष के कारावास के बाद उन्हें छोड़ दिया गया। पहले आपने अनुशीलन समिति के अन्दर काम किया किन्तु सरकार ने समिति के प्रायः सभी कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करके उसके काम को ढीला कर दिया तो आपने वारीन्द्र आदि से ’युगान्तर’ का कार्य सम्भाल लिया। आप एक धार्मिक प्रवृति के उदार और दयाशील व्यक्ति थे। इससे आपका साथियों पर अच्छा खासा प्रभाव रहता था। निर्भिकता, निःस्वार्थ सेवा भाव तथा अन्यतम नेतृत्व गुणों के कारण उस समय बंगाली क्रांतिकारियों के वे सहज ही नेता बन गये थे।
पंजाब में द्वितीय स्वतंत्रता संग्राम की तैयारी के समय रास बिहारी बोस ने जतिन बाघा को उत्तर प्रदेश (बनारस) में बुलाया व स्वतंत्रता संग्राम का विशेष दायित्व संभलाया।
क्रांतिकारियों को शस्त्र खरीदने के लिये रुपयों की विशेष आवश्यकता थी जिसकी पूर्ति के लिये जतिन बाघा ने दिनांक 22 फरवरी, 1915 को एक बैंक डकैती कर 22 हजार रुपये प्राप्त किये।
सशस्त्र क्रांति के लिये देश में किसी भी क्रांतिकारी संघ को हथियार खरीदने के लिये रुपयों की आवश्यकता होती थी तो उसे बैंक डकैतियों के माहिर बाघा जतिन अपना पराक्रम दिखाकर पूर्ण करते थे। बलियाघाट व गार्डन रीच की डकैतियां प्रसिद्ध रही हैं।
बाघा ने राडा कम्पनी के 52 मोजर व 50000 कारतूस भी फिरंगियों से सफलतापूर्वक छीने थे।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सशस्त्र युद्ध के लिये बाघा ने जर्मनी से हथियार मंगाये थे। 4 सितम्बर, 1915 में बाघा जतिन को उनके पांच साथियों सहित फिरंगी सैना के 50 सिपाहियों ने बालेश्वर के पास घेर लिया। दो दिन तक मुकाबला चला परन्तु छापामार युद्ध में दक्ष बाघा ने फिरंगी फौज को एक कदम भी आगे नहीं बढ़ने दिया। इस मुकाबले में फिरंगी खुफिया प्रधान टैगर्ट ने कमान संभाली हुई थी। यतीन्द्र की पीठ में गोली लगी किन्तु गिरे नहीं यह देख कर उनकी टाँग में गोली मारी गई जो जाँघ को पार कर गई। वह गिर पड़े। उनके एक साथी चितप्रिय राय भी काम आये। मनोरंजन, नरेन्द्र और ज्योतिषी को पकड़ लिया गया। श्री यतीन्द्रनाथ को जंगल से उठा कर बालेश्वर के अस्पताल में पहुँचाया गया वहाँ वे 9/10 सितम्बर सन् 1915 को वीरगति को प्राप्त हुये।
बाघा जतिन के मामले में बेरिस्टर जे. एन. राय ने सी.आई.डी. प्रधान टैगर्ट से पूछा “क्या यतीन्द्र जीवित है ?“ तो टैगर्ट ने उत्तर दिया “दूर्भाग्यवश वह मर गया।“ शहीद बाघा के प्रति सम्मानजनक शब्दों पर आपत्ति किये जाने पर टैगर्ट ने कहा “Though I had to do my duties, I have a great admiration for him. He was the only Bengali who died in an open fight from trench”
यानि ”मुझे अपने कत्र्तव्य का पालन करना था किन्तु मैं यतीन्द्र की वीरता का सम्मान करता हूँ। वे अकेले बंगाली थे जो लड़ते-लड़ते मरे।“
हमारे देश का दूर्भाग्य है कि आजादी के इतिहास में हमारे क्रांतिवीरों को उग्रवादी लिखा जाता है परन्तु फिरंगी अधिकारी भी उनकी वीरता के कायल थे।
जतिन बाघा की क्रांतिकारी संस्था की योजना सन् 1857 की गदर की भँति ही एक और गदर कराने की थी। इसमे राजा महेन्द्र प्रताप और मौलवी बरकतुल्ला जैसे प्रभावशाली आदमी भी शामिल थे।
श्री भोलानाथ चटर्जी और नरेन्द्र भट्टाचार्य को बटेविया भेजा गया ताकि वे जर्मनी से दो हथियार बन्द जहाज बंगाल की खाड़ी में पहुँचा दें। इधर अमेरिकन जैक क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को इसकी सूचना दे दी। जर्मन अधिकारियों को इस भेद के खुल जाने का पता चल गया इससे जहाज न आ सके फिर बालासोर घाट पर हथियार लाने का प्रबन्ध किया गया। किन्तु अंग्रेजों को पहले ही पता चल गया था अतः जो भी थोड़े बहुत आये पकड़ लिये गये और स्थान-स्थान पर तलाशियों की धूम मच गई।
बाघा जतिन के क्रांतिकारी शब्द:
“पूंजीवाद समाप्त कर श्रेणीहीन समाज की स्थापना क्रांतिकारियों का लक्ष्य है। देशी-विदेशी शोषण से मुक्त कराना और आत्मनिर्णय द्वारा जीवन-यापन का अक्सर हमारी मांग है।“

शत् शत् नमन!!

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