:- बैकुठ शुक्ला -:


बैंकुठ शुक्ला आपका जन्म 1907 को गांव जलालपुर जिला मुजफ्फरपुर वर्तमान वैशाली, बिहार में हुआ था।


आपने सांडर्स वध के मामले बने   सरकारी गवाह फणीन्द्र नाथ घोष गद्दारी की सजा दी थी।

  फणीन्द्र नाथ घोष हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का वरिष्ठ सदस्य था।

उसे दल के बारे में सारी जानकारी थी।
सांडर्स वध  एक्शन में फणीन्द्र नाथ घोष की गवाही भगतसिंह, राजगुरू व सुखदेव को फांसी का मुख्य कारण थी।
फणीन्द्र की गवाही से क्रांतिकारी योगेंद्र शुक्ल को भी जेल में जाना पड़ा था।

जलगांव मामले में भगवानदास मोहर व सदाशिव मलकापुर जेल में थे ।
चंद्रशेखर आजाद उन्हें निर्देश दिए थे कि जेल या अदालत में मौका मिलते ही फणीन्द्र व जयगोपाल को मार दिया जाय और यह भी कहा  कि दोनों  किसी एक को मारना पड़े तो फनींद्र को मार दो।


परन्तु उस समय फणीन्द्र बच गया।  
फणींद्र को बिहार पर कलंक मन जाने लगा था ।

अब इस एक्शन का दायित्व

  बैकुठ शुक्ला  सौंपा गया।
दिनांक 9 नवंबर 1932 फणीन्द्रनाथ घोष  अपने साथी गणेश प्रसाद गुप्त के साथ मीना बाजार  बेतिया में अपनी दुकान पर  बैठा था ।

बैकुठ शुक्ला ने खुफ़री से फणीन्द्र के सिर व शरीर पर वार किये। 

गणेश प्रसाद गुप्त ने  छुड़ाने की कोशिश की तो उस पर भी वार किया।
  एक दुकानदार के भी लगी।


इस आक्रमण में घायल  फणीन्द्र व गणेश गुप्त को हॉस्पिटल ले जाया गया
बैकुठ ने जोरदार वार किए थे जो गदारों के लिए मौत ही थे ।


फणीन्द्र दिनांक 17 नवंबर 1932 को व गणेश प्रसाद गुप्त 20 नवंबर 1932 को मर गए।

इस मामले में बैकुंठ शुक्ल को फांसी की सजा हुई और दिनांक 14 मई 1934 को गया सेंट्रल जेल  फांसी दी गई।

उस समय क्रांतिकारी विभूति भूषण दास गुप्त व अन्य क्रांतिकारी भी गया केंद्रीय जेल में ही थे थे ।
उन्होंने अपनी बांग्ला पुस्तक “सेइ महावर्षार  गंगाजल हिंदी अनुवाद सरफरोशी की तमन्ना में लिखा है –
 

वो अपने साथियों के साथ गया केंद्रीय जेल के वार्ड नंबर 15 में थे।  जब किसी क्रांतिकारी को फांसी दी जानी होती थी तो उसे पहले दिन वार्ड नंबर 15 में रखा जाता था ।
और उस दिन वार्ड नंबर 15 के अ कैदियों को अन्य वार्डों में भेज दिया जाता था।

फांसी से पहले दिन बैकुठ को शुक्ला को वार्ड नंबर 15 में लाया गया और उन लोगों को वार्ड नंबर 15 से अन्य वार्ड में भेजा दिया गया।
इस बात का पता उन्हें पता चल चुका था कि बैकुठ शुक्ला को वार्ड नम्बर 15 में लाया गया है और उन्हें कल फांसी दी जानी है।

रात को सभी वार्डो में क्रांतिकारी देशभक्ति गीत गा रहे थे।

बैकुंठ शुक्ल ने वार्ड नम्बर 15 से पुकार कर कहा-
दा अब समय कम रह गया है,
वंदे मातरम सुनादो
वंदेमातरम गाया गया


फांसी के लिए जाने से पुर्व बैंकुठ ने गुप्त जी कहा
‘दादा, अब तो चलना है।
मैं एक बात कहना चाहता हूं। आप जेल से बाहर जाने के बाद बिहार में बाल विवाह की जो प्रथा आज भी प्रचलित है, उसे बंद करने का प्रयत्न अवश्य कीजिएगा।

पंद्रह नंबर से बाहर निकलने के पहले बैकुंठ शुक्ल क्षण भर के लिए रुके और दासगुप्त की सेल की ओर देखकर बोले-‘अब चलता हूं ।
मैं फिर आऊंगा।
देश तो आजाद नहीं हुआ। वंदेमातरम्…।

शत शत नमन

Recent Posts

This website uses cookies and is providing details for the purpose of sharing information only. The content shared is NOT recommended to be the source of research or academic resource creation.