पाण्डुरंग सदाशिव खानखोज

पाण्डुरंग सदाशिव खानखोज | Pandurang Sadashiv Khankhoje

आप का जन्म दिनाँक 17 नवंबर 1883 में वर्धा, नागपुर, महाराष्ट्र में हुआ।

आपकी माध्यमिक शिक्षा  नागपुर के नील सिटी हाई स्कूल में हुई।

आप बंगाली क्रांतिकारी सखाराम देउस्कर, ब्रह्मबांधव बंदोपाध्याय के संपर्क में आये।

आप 1906 में लोकमान्य तिलक के कहने पर भारत छोड़ कर संयुक्त राज्य अमेरिका में चले गए।

आप केलिफोर्निया व पोर्टलैंड में कृषि का अध्ययन करते हुए,  क्रांतिकारियों गतिविधियों में भी शामिल रहे।

आप “हिंदुस्तान एसोसिएशन ” के गठन में लाला हरदयाल, पंडित काशीराम, विष्णु गणेश पिंगले, वीरेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय, भूपेंद्रनाथ दत्त के साथ थे।
काशीराम इसमें संगठन अध्यक्ष थे

यही दल को कालांतर में गदरपार्टी का रूप दिया गया ।

आप गदर पार्टी का “प्रहार ” विभाग संभालते थे।
जिसके जिम्मे हथियार व बम्ब आदि उपलब्ध करवाना था।

गदरपार्टी की तरफ से आपको प्रथम विश्व युद्ध के समय भारत भेजा।

आप आते समय कुस्तुन्तुनिया में तुर्की के शाह अनवर पाशा से मिले व उनके सहयोग से अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए युद्ध की योजना बनाई।



आप बलूचिस्तान गए वहाँ आपने जर्मन फौज के अधिकारी विल्हेल्म वासमस से मिलकर वाम में बलूचियों का संगठन तैयार कर

अस्थायी सरकार की घोषणा करदी
सेना भी बनाली।
अंग्रेजों ने अमीर को अपने साथ मिला लिया।

आपको वहां से भागना पड़ा। आप बस्त गए वहाँ पकड़ लिये गए।

वहाँ से छूटकर नेपरिन गए। वहां अंग्रेजों ने अधिकार जमा कर लिया था।

अब आपने नेपरिन से शिरॉज (ईरान) गए। वहां जाने पर आपको  सूफी अम्बाप्रसाद के कोर्टमार्शल कर हत्या कर दिए जाने का समाचार मिला।

हिम्मत हारना आपके शब्दकोश में था ही नहीं।
अब आप  ईरान की  फौज में भर्ती हो गए।
ईरान ने आत्म समर्पण
कर दिया।

आप 10 जून 1919 में भारत आये । यहाँ भी आजादी के लिए उपयुक्त परिस्थितियां  नहीं थी।

आप बर्लिन गए वहां भूपेन्द्र नाथ दत्त व बीरेंद्र चट्टोपाध्याय के साथ रूस गए।

आप 1924 तक रूस में रहे।। आपका लेनिन से संपर्क था
आप 1949 में कृषि सलाहकार के रूप में भारत आये।
लेकिन पांच महीने बाद लौट गए।

आप अप्रैल 1949 में मध्य प्रदेश सरकार के अतिथि के रूप में आए। एयरपोर्ट पर 12 घंटे इंतजार करना पड़ा। क्योंकि आपका नाम काली सूची में था।

फिर फरवरी 1950 से अगस्त 1951 तक डेढ़ साल के लिए भारत में निवास किया।
फिर विदेश गए।

1961 में, उन्हें भारतीय नागरिकता प्रदान की गई।

अन्ततः आप 1955 में स्थायी निवास के लिए नागपुर आए।

आपका दिनाँक 22 जनवरी 1967 को स्वर्गवास हुआ।

देश की आजादी के लिए आप अपनी उम्रभर चीन, जापान, अमेरिका, कनाडा, ग्रीस, तुर्की, ईरान, बलूचिस्तान सीमा, फ्रांस, जर्मनी, रूस, मैक्सिको में अपनी गतिविधियों को जारी रखा।
शत शत नमन

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