–  :    चापेकर एक्शन  -:

–  :    चापेकर एक्शन  -:

दामोदर हरी चापेकर,बालकृष्ण हरि चापेकर वासुदे हरि चापेकर तीनों सगे भाई थे । चापेकर बंधु वासुदेव फड़के से प्रभावित थे। अखाड़े व लाठी क्लब संचालित कर युवाओं को युद्धाभ्यास करवाते थे ।
अंग्रेजों ने फूट-डालो व राज करो कि नीति से बम्बई में दंगे करवाये । सुरक्षाहेतु चापेकर बंधुओं ने ” हिदू धर्म सरंक्षणी सभा” का संगठन किया । इसमें 200 युवा सदस्य थे।
चापेकर बंधु गणेश पूजा व शिवाजी उत्सव पर लोगों में वीरता का संचार कर फ़िरंगियों के विरुद्ध संघर्ष हेतु प्रेरित करते थे ।
दामोदर चापेकर ने ” शिवाजी की पुकार ” शीर्षक से एक कविता छपवाई  जिसका अर्थ था
” शिवाजी कहते हैं कि मैंने दुष्टों का संहार कर भूमिका भार हल्का किया देश उद्वार कर स्वराज्य स्थापना तथा धर्म रक्षण किया ।”
चापेकर ने ललकारते हुए लिखा अब अवसर देख म्लेच्छ रेलगाड़ियों से स्त्रियों को घसीट कर बेइज्जत करते हैं।
हे कायरों तुम लोग कैसे सहन करते हो ? इसके विरूद्ध आवाज उठाओ ।
इस कविता के प्रकाशन पर बाल गंगाधर तिलक पर मुकदमा चलाया गया 14 सितम्बर1897 को तिलक जी को  डेढ़ वर्ष की सजा दी गई ।
महाराष्ट्र में दिसंबर 1896 में भीषण रूप से प्लेग फैलने लगा इसकी  रोकथाम हेतु सरकार ने प्लेग निवारक समिति बनाई जिसका अध्यक्ष वाल्टर रैण्ड था । रैण्ड अपनी निर्ममता हेतु कुख्यात था।जब रैण्ड सहायक कलेक्टर था तो उसने  1894 में निषिद्ध स्थान पर संगीत साधना करने के लिए 13 लोगों को कारावास से दण्डित किया था।।
प्लेग रोकथाम के लिए रैण्ड ने 300 घोड़े वाली पुलिस सहित प्लेग ग्रस्त क्षेत्र को घेर लिया व लोगों के घरों को लूटने की छूट देदी । मरीजों कैदियों की तरह हाँकते हुए  दूर शिविरों में ले गया ।शिविरों में मरीजों के साथ  मारपीत व अपमानजनक व्यवहार किया जाता था।
इंसानियत की हद को लांघते हुए दुष्ट रैण्ड द्वारा महिलाओं की जांच चोलियों को उतरा कर नंगा करके करवायी जाने लगी ।
यह सब बर्दाश्त से बाहर हो रहा था पर इस अत्याचार के विरुद्ध कोई आवाज़ नहीं उठ रही थी।
तभी शिवाजी की जयंती पर 12 जून को विठ्ठल मंदिर पर आयोजित एक सभा में बाल गंगाधर तिलक ने रैण्ड की भर्त्सना करते हए पुणे  के युवाओं को ललकारते हुए कहा
‘ “”पुणे के लोगों में पुरुषत्व है ही नहीं, अन्यथा क्या मजाल हमारे घरों में घुस जाए ।”

यह बात चापेकर बंधुओं के शरीर में  तीर की तरह लगी और उनकी आत्माओं को झीझोड़कर रख दिया ।
दामोदर चापेकर ने  अपने छोटे भाई  वासुदेव के साथ तीन माह तक रैण्ड की दैनिक दिनचर्या पर नज़र रखी ।
चापेकर को सूचना मिली कि  22 जून 1897 को विक्टोरिया राज  की हीरक जयंती मनाई जाएगी जिसमें रैण्ड जाएगा। चापेकर ने उस दिन रैण्ड का वध करने की ठानली ।
हीरक जयंती 22 जून 1897 को पार्टी से लौटते समय  रात्रि को 11:30 बजे जैसे ही  रैण्ड की  बग्गी गवर्नमेंट  हाउस के मुख्य फाटक से आगे पहुंची । दामोदर बघी के पीछे चढ़े व  रैंड को गोली मार दी और कूदकर झाड़ियों में लापता हो गए  ।
कुछ दूरी पर  बालकृष्ण  चापेकर   ने  आयरिस्ट एक गोली चलाई निशाना अचूक था आयरेस्ट वहीं मर गया । बालकृष्ण भी मौके से गायब हो गए ।
रैण्ड 3 जुलाई को  मर गया । घटना का कोई सबूत नहीं था। सरकार ने हत्यारों को पकड़ने के लिए ₹20000 का इनाम रखा ।  हमारे देश गदार हमेशा रहे हैं उस वक्त भी थे । इनाम के लालच में गणेश शंकर तथा रामचंद्र द्रविड़ मुखबिर बन गए व 9 अगस्त को दामोदर चापेकर को गिरफ्तार कर लिया गया ।
बालकृष्ण निजाम राज्य के जंगल में भूमिगत  हो गए ।
दिनांक 8 अक्टूबर 1997 को चीज प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट के समक्ष अपने बचाव में बालकृष्ण कहा कि   “”  मैं विदेशी दासता के प्रत्येक  चिन्ह से घृणा करते हूँ ।””
उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि अत्याचारी सम्राट की मूर्ति पर उन्होंने ही  कॉलतोर लगाकर जूतों की माला पहनाई थी व अफसरों के पंडाल में आग लगाई थी ।
हालांकि चापेकर के विरुद्ध कोई प्रमाण पुलिस को नहीं मिला था संदेह के आधार पर दामोदर को फांसी की सजा सुनाई गई।
उस समय तिलक जी भी जेल में थे दामोदर ने तिलक से गीता ली। दिनांक 18 अप्रेल 1898 यरवदा जेल में हाथ में गीता लिए हुए दामोदर फांसी  पर चढ गए ।
वासुदेव  चापेकर को थाने में प्रतिदिन उपस्थिति दर्ज करवानी पड़ती थी ।
अपनी जननी से इजाजत व आशीर्वाद लेकर  रामचंद्र व गणेश शंकर  मुखवीरों को वासुदेव व उनके दोस्त महादेव रानाडे ने 8 फ़रवरी को गोली मारी। गणेश तुरंत मर गया रामचंद्र दूसरे दिन मर गया ।
इससे पूर्व 10 फरवरी को वासुदेव ने अनुसंधान अधिकारी मिस्टर बुइन पुलिस सुपरिंटेंडेंट को गोली मारने की कोशिश की परंतु सफल नहीं हो सके ।
वासुदेव और रानाडे ने अदालत में समस्त घटनाओं को स्वीकार किया क्रांतिवीर वासुदेव को दिनांक 8 मई 1898 को क्रांतिवीर बालकृष्ण को दिनांक 12 मई 98 को सच्चे दोस्त एंव देशभक्त महादेव गोविंद रानाडे को दिनांक 10 को यरवदा जेल में ही फांसी दी गई ।
फड़के के बाद चापेकर बंधुओं के इस क्रांतिकारी एक्शन से फिरंगी बुरी तरह से डर गए ।

आपको कैसा लगेगा यह जानकर की चापेकर बंधुओं की माँ के पास देश का कोई नेता दुःख प्रकट करने नहीं गया ।
हाँ सिस्टर निवेदिता कलकत्ता से पूना उन वीरों की शौर्यमयी माँ के दर्शन करने व सांत्वना देने जरूर गई थी ।
शत शत नमन शहीदों को।

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