सन 1923 तक बंगाल ऑर्डिनेंस की आड़ में बंगाल के लगभग सभी क्रांतिकारीयों को पकड़ कर उनके सभी ठिकानों पर छापे मारे जा चुके थे।बंगाल में खूंखार पुलिस अधिकारी टेगार्ट का आतंक था।
टेगार्ट इस क़दर खतरनाक पुलिस अधिकारी , उसकी मेज पर बम पड़ा रहता था ।
एक बार तो उसके कार्यालय में एक बम्ब फट गया ,वह पास ही खड़ा था पर टेगार्ड के चेहरे कोई शिकन नहीं आयी।
टेगार्ट ने ही बाघा जतिन व उनके साथियों का एनकाउंटर किया था।
तिथि विवादित है 2 या 12 जनवरी 1924 को कलकत्ता में कोहरा छाया हुआ था । चौरंगी रोड पर सुबह 7:00 बजे अचानक एक युवक ने एक फिरंगी को गोलियां से उड़ा दिया।
युवक ने अपने शिकार को टेगार्ट समझ कर मारा था। पर मरने वाला ई डे था। उसकी शक्ल टेगार्ट जैसी थी । कोहरे के कारण युवक अपने टारगेट को पहचान नहीं कर सका।
यह युवा क्रांतिकारी गोपी मोहन साहा थे। युवक ने भागते हुए तीन को गोली मार कर घायल किया पर पकड़ा गया।
अदालत में कार्यवाही के समय टेगार्ट अदालत में मौजूद था । गोपी मोहन ने खुले न्यायालय में बड़े सख्त शब्दों में कहा की मैं तो मिस्टर टेगार्ट को मारना चाहता था। लेकिन पहचान में गलती हो गयी । निर्दोष ई डे के मारे जाने का मुझे अफसोस है ।
यही नहीं गोपीमोहन ने टेगार्ट की और इशारा करते हुए चुनौती दी कि अगर बंगाल में एक भी क्रांतिकारी है, तो वह मेरा अधूरा काम पूर्ण करेगा ।
मिस्टर टेगार्ट अपने को सुरक्षित समझते होंगे।
अदालत में आरोप लगाने के समय भी गोपीमोहन ने जज से कहा आरोप लगाने में कंजूसी मत कीजिए और दो चार धाराएं लगाई जा सकती है तो लगाइए ।
कैसे भूल गए हम ऐसे महान क्रांतिवीरों को!?
सोसिअल मीडिया पर इनके जन्म परिवार , जीवन का पूर्ण ब्यौरा नहीं है।
गोपीमोहन को अदालत ने 16 फरवरी 1924 को फांसी की सजा सुनाई । दिनाँक 1 मार्च 1924 को फांसी दे दी गई।
शत शत नमन शहीदों को