वीर सावरकर

विनायक दामोदर सावरकर | Vinayak Damodar Savarkar


       

भारतीय स्वतंत्र संग्राम में वीर विनायकराव सावरकर का  विशेष योगदान रहा।
वीर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को  भंगुर नासिक तत्समय बॉम्बे प्रेसीडेंसी में हुआ था।
आपने अपनी  बाल्यावस्था में ही  क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया था ।

सन 1899 में आपने नासिक में  “देशभक्तों का मेला ” नामक दल का गठन किया।

अध्ययन काल में ही 1900 में नासिक में  “मित्र मेला” की भी स्थापना की व मित्र मेलों का आयोजन करते थे।

आपने शिवाजी हाई स्कूल से सन 1901 में उन्होंने  मैट्रिक पास करने के बाद  फर्गुसन कॉलेज में पूना में प्रवेश लिया था।

आपने “आर्यन वीकली “ पत्रिका का संपादन किया। यह जो हस्तलिखित  पत्रिका थी।
आपने 22 जनवरी 1901 भारत में  ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया का शोक दिवस मनाए जाने का  विरोध किया था ।

सन 1904  में आपने “अभिनव भारत सोसायटी “ का गठन किया।
इस सोसाइटी की माध्यम से क्रांतिकारी गतिविधियों का संचालन करते रहे।

1 अक्टूबर 1905  को आपने ही भारत में पहली बार विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की घोषणा की थी।
आपने ही 22 अगस्त 1906 को पूना में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई थी।

लोकमान्य  बालगंगाधर तिलक के मार्गदर्शन तथा अनुमोदन पर आपको विदेश में शिक्षा हेतु
श्री श्यामजी वर्मा  से  छात्रवृत्ति दी गई।
आप सुनियोजित योजना से 1906 में लंदन इंग्लैंड पहुंचे व श्यामजी कृष्ण वर्मा के साथ इंडिया हाउस की गतिविधियों में सक्रिय रूप से लग गए।

इंग्लैंड जाने के पूर्व आपने अभिनव भारत का उत्तरदायित्व अपने बड़े भाई श्री गणेश सावरकर को सम्भलाया।
इस संगठन के मार्गदर्शक श्री तिलक थे।

लंदन के इंडिया हाउस में रहकर आपने भारतीय छात्रों को राष्ट्रीय स्वाधीनता के लक्ष्य हेतु एकत्र करने तथा उनमें राष्ट्रवाद की अलख प्रज्वलित करने के कार्य में लग गए। इंडिया हाउस भारतीय स्वतंत्र संग्राम के क्रांतिकारियों का अड्डा बन चुका था।

आपने लंदन अध्ययनरत छात्रों से सम्पर्क किया। इसी क्रम में आपकी मुलाकात मदनलाल ढींगरा से हुई जो वहां पढ़ने गए हुए थे।

आपने लंदन में  इटली के महान क्रान्तिकारी मैज़ीनी की जीवनी का मराठी  में अनुवाद कर इसे  भारत भेजा जो भारतीय  क्रान्तिकारियों के लिए प्रेरणास्रोत बनी। 

लंदन में आपने 10 मई 1907 को भारतीय प्रथम स्वतंत्रता संग्राम   (1857) की   50 वीं वर्षगाँठ मनाई।
इस कार्यक्रम में क्रांतिकारीयों ने बैज लगाए ।
आपने ही इस कार्यक्रम में   अंग्रेज़ों द्वारा सेना विद्रोह कहे जाने वाले एक्शन को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम घोषित किया। 


इस पुस्तक के छपने से पूर्व ही अंग्रेजों ने इसे बिना पढ़े ही प्रतिबंधित कर दिया।

अंग्रेजों के लाख प्रयत्नों के बावजूद मैडम भीकाजी कामा ने इस पुस्तक को सफलतापूर्वक जर्मनी, नीदरलैण्ड तथा फ़्रांस से प्रकाशित करा लिया व  बड़ी कठिनाइयों से इसकी प्रति भारत पहुंचाया गयी।

शहीदे आजम भगत सिंह ने इस पुस्तक का रूपांतरण किया ।
भगतसिंह और उनके साथी इस पुस्तक से बहुत प्रेरित रहे।

यह पहली पुस्तक थी जिसे प्रकाशित किये जाने से  पूर्व ही बिना पढ़े  प्रतिबंधित  किया गया।


 


इंडिया हॉउस की गतिविधियां पर नजर रखने हेतु ब्रिटिश खुफिया विभाग ने अपने जासूस नियुक्त किए ।

वीर सावरकर जासूसों के जासूस थे ।  उन्होंने एक भरतीय अंग्रेजी को देशभक्ति का पाठ पढ़ा कर उसका ह्रदय परिवर्तन कर दिया अब वह देश हित में सावरकर को अंग्रेजों की सूचना देने लगा।

इस समय  सावरकर  रूस, टर्की, स्वीडन ,फ्रांस ,आयरलैंड आदि  देशों के क्रान्तिकारियों से अपने संबंध-संपर्क स्थापित कर चुके थे ।

उन दिनों स्टुडगार्ड (जर्मनी) में अंतरराष्ट्रीय  सोशलिस्ट कांग्रेस का आयोजन हुआ ।
जिसमें दुनियाँ भर के सोशलिस्टों ने भाग लिया।
सावरकर की योजन अनुसार इस कॉन्फ़्रेंस में सरदार सिंह राणा व मैडम कामा ने भाग लिया ।
मैडम कमा ने इस कॉन्फ्रेंस में सावरकर के कार्यक्रम अनुसार स्वतंत्र भारत का 8 कमल ,सूरज, चाँद व वंदेमातरम वाला ध्वजारोहण किया।

इस कॉन्फ्रेंस के समाचार दुनियां के सभी समाचार पत्रों  प्रकाशन हुआ।

 
सावरकर ने फ्री इंडिया सोसायटी का गठन किया।
जिसमें भाई परमानंद , मदन लाल धींगरा , लाला हरदयाल, सेनापति बापट, बाबा जोशी, महेश चरण सिन्हा कोरगांवकर , हरनाम सिंह आदि प्रमुख थे।
सावरकर ने लंदन में ग्रेज इन्न लॉ कॉलेज से Bar At Law   की डिग्री लेली ।
परंतु उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण सरकार ने डिग्री जप्त कर दी।

लंदन में रहकर अपने क्रांतिकारी कार्यो के कारण सावरकर विश्व विख्यात हो गए।

सावरकर ने एक क्रांतिकारी को रूसी क्रांतिकारियों के पास  बम बनाने की तकनीक सीखने हेतु भेजा तथा । बम्ब बनाने की 45 तकनीकों को रेखचित्र सहित अपने भाई बाबा सावरकर को भेजी।

वास्तव में श्री सावरकर भारत में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध छापामार युद्ध की योजना पर कार्यरत थे। 

उनकी योजना पूरे भारत में एक ही समय पर, एक साथ कई ब्रिटिश ठिकानों पर बम धमाकों द्वारा ब्रिटिश साम्राज्य को हिलाने की थी।
सावरकर ने इंडिया  हाउस लंदन से कई बार गुप्त पार्सलों  में  भारत हथियार भेजें।

सन 1907 में  लाला लाजपतराय व अजीत सिंह जी को गिरफ्तार किये जाने के विरुद्ध सावरकर ने लंदन में  एक सभा का आयोजन किया गया था।
इस सभा के मुख्य वक्ता   सावरकर ही थे।

इसी समय भारत में अंग्रेज़ों द्वारा खुदीराम बोस, कन्हैई लाल दत्त, सत्येंद्र नाथ वसु तथा कांशीराम को फाँसी दी गई।

इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए 20 जून 190 9 को इंडिया हाउस में की गई बैठक में सावरकर ने बदला लेने की  घोषणा कर दी थी।

इसी योजना के अंतर्गत 19 दिसंबर 1909 को अभिनव भारत के अनंत कन्हरे ने नासिक कलेक्टर जैकसन का वध किया था।

जिस रिवाल्वर से अन्नत कन्हरे ने जैक्सन का वध किया गया था। वो सावरकर द्वारा लंदन से ही भेजा गया था।

सावरकर बंगाल विभाजन के लिए भारत सचिव  कर्जन वायली को दोषी मानते थे ।
वायली अपने जासूसों की मार्फ़त इंडिया हॉउस पर निगरानी रख रहा था।
इसलिए वायली उनके टारगेट पर आ गया।

सावरकर की योजनानुसार ही क्रांतिवीर मदनलाल ढींगरा ने दिनाँक 1 जुलाई 1909  जहाँगीर हॉल लंदन में  कर्ज़न वायली का गोली मारकर  वध किया था।

ढींगरा को रिवॉल्वर भी  सावरकर ने ही उपलब्ध कराया था

लंदन में वायली के सरेआम वध के बाद लंदन के प्रमुख समाचार पत्रों में
हिंदुस्तानियों ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध अंग्रेज़ों की धरती पर ही युद्ध प्रारंभ कर दिया है” ,
खबर ने  ब्रिटिश सरकार को हिलाकर रख दिया।
 
श्री सावरकर ने ढींगरा को हर संभव क़ानूनी सहायता प्रदान की, पर उन्हें बचा न सके।

वायली वध के बाद अंग्रेजों के   भारतीय पिठुओं  ने ढींगरा  के विरूद्ध   सर्वसम्मति से निंदा प्रस्ताव पारित करने के आशय से लंदन में आम सभा बुलाई
इस सभा में एक अंग्रेज ने सावरकर के थप्पड़ मारते हुए कहा look! how straight   the English first goes

तभी सावरकर के पास खड़े भारतीय क्रांतिकारी  M. P. चिरूमलाचार्य ने पामर के मुक्का मारते हुए जबाब दिया
look! how straight the Indian club goes

इस सभा मे   सावरकर  आपत्ति की व सर्वसम्मति से प्रस्ताव को पारित होने से रोकने में सफल रहे।

लंदन में सावरकर को भारत मे अपने  इकलौते पुत्र प्रभाकर की मृत्यु का समाचार मिला।

इस दुःख को उन्होंने सहन किया व अपने लक्ष्य ओर चलते ही रहे।


अब सावरकर अंग्रेजों के लिए एक चुनौती बन चुके थे। इसलिए ब्रिटिश सरकार  किसी भी तरह से सावरकर को गिरफ्तार कर जेल में डालना चाहती थी।

इस हेतु ब्रिटिश सरकार ने सावरकर पर  सम्राट के विरुद्ध युद्ध करने, युवाओं को ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध भड़काने तथा बम बनाने का साहित्य प्रसारित करने के आरोप लगाते हुए उनकी गिरफ़्तारी के लिए भारत तथा इंग्लैंड में एक साथ वारंट निकाला

सावरकर को दिनाँक 13 मार्च 1910 (बुधवार) को विक्टोरिया स्टेशन पर  गिरफ्तार  शाम को   ओल्ड बिली कोर्ट में पेश किया गया। जिसने 12 मई 1910 को सावरकर पर भारत में अभियोग चलाने का आदेश दिया।

सावरकर अपने स्त्रोतों से पता लगा लिया था कि  उन्हें दिनाँक 1 जुलाई 1910 को ‘मोरिया’ नामक जहाज़ से  भारत ले जाया जायेगा वह फ्रांस के दक्षिणि तट  मार्सलीज से गुज़रेगा ।

इसलिए सावरकर ने भिकाजी कामा व श्यामजी वर्मा व साथियों से मिलकर यह योजन बनाई कि सावरकर समुद्र में कूद कर तैरते हुए मार्सलीज पहुंच जाएंगे।
वहां ये लोग टेक्सी तैयार रखेंगे जिससे सावरकर निकल लेंगे।

इस योजनानुसार सावरकर ने  दिनांक 8 जुलाई 1910 को जहाज के शौचालय की खिड़की तोड़ कर खुले समुद्र में ऐतिहासिक छलांग लगाई व पुलिस फायरिंग से बचते हुए तैरकर मार्सलीज पहुंच गए पर मौका टैक्सी नहीं पहुंची।

सावरकर को अंतर्राष्ट्रीय विधि का ज्ञान था और उन्हें पता था कि फ्रांस में इंग्लैंड की सरकार की पुलिस उन्हें गिरफ्तार नहीं कर सकती ।

इसलिए उन्होंने भागकर अपने आप को फ्रांस के एक पुलिस अधिकारी  के समक्ष पेश करते हुए उसे समझाया कि वह उन्हें ब्रिटिश पुलिस की गिरफ्तारी से बचाये।
परंतु फ्रांस के उस पुलिस  अधिकारी को अंतर्राष्ट्रीय विधि का कुछ भी ज्ञान नहीं था और उसने अंग्रेजी पुलिस अधिकारियों से मिलकर सावरकर को ब्रिटिश पुलिस को सौंप दिया।

सावरकर की फ्रांस  से गिरफ्तारी का मामला अंतरराष्ट्रीय न्यायालय हेग में ले जाया गया और फ्रांस सरकार ने ब्रिटेन के विरुद्ध आक्षेप लगाया कि अंग्रेजी सरकार द्वारा फ्रांस की सीमा से राजनीतिक बंदी की गिरफ्तारी गलत  की गई है ।
दोनों देशों में  सावरकर की गिरफ्तारी के कारण  तनाव आ गया परंतु कुछ मध्यस्थों ने बीच-बचाव करके फ्रांस को मना लिया और फ्रांस ने अपनी बात को छोड़ दिया।

बम्बई में सावरकर के सम्राट के विरुद्ध युद्ध करने व जैक्सन की हत्या में हाथ होने के विरुद्ध विशेष न्यायालय में मुकदमा चलाये गए।

पहले सम्राट के विरुद्ध युद्ध के मामले  में सावरकर को दिनाँक 24 दिसंबर 1910 को  आजीवन कारावास की कालापानी की सज़ा सुनाई।
फिर नाशिक कलेक्टर जैकसन की हत्या के मामले में भी दिनाँक 11 अप्रैल 1911को काला पानी की सजा दे दी गई।
इस प्रकार सावरकर को दोआजीवन कारावास के दंड से दंडित किया गया।
सावरकर को दो आजीवन कारावास भुगतान हेतु अप्रैल 1911 में  अंडमान सेल्यूलर जेल में भेज दिया गया।

वीर सावरकर नें लंदन में रहकर अंग्रेजों के जासूसों की आंखों में धूल झोंक कर स्वतंत्रता संग्राम को निरन्तर गति प्रदान की।

इसलिए अंग्रेजी सरकार सावरकर को अपना सबसे बड़ा खतरनाक दुश्मन मानती थी ।
अंडमान जेल में सावरकर  एकमात्र कैदी  थे  जिन्हें खतरनाक कैदी का दर्जा दिया गया ।
जिनके गले में ” D ” यानी  Dangerous   बैज लगा था ।

सावरकर को अंडमान जेल पहले  6 माह तक एक कालकोठरी में एकांतवास में रखा गया।

हथकड़ी व बेड़ियों में रखा जाता था।   नारियल  को हाथों से तोड़ कर रस्सी बनवाई जाती थी जिससे हाथ लहूलुहान रहते थे।

कोलू में जोतकर नारियल का तेल निकालने का काम करवाया जाता था । थककर थोड़ा सुस्त होते ही बेंत से पिटाई की जाती थी।

जेल की मानवीय यात्राओं से परेशान होकर एक बार तो सावरकर ने भी आत्महत्या करने की सोच ली थी ।

अंडमान जेल का जेलर मिस्टर डेविड बैरी बहुत निर्दयी व्यक्ति था । 
कैदियों को जेल में बिल्कुल बेकार खाना दिया जाता था  ।
नहाने के लिए मात्र 4 मग पानी दिया जाता था ।
कैदी को निर्धारित मात्रा में कोलू से तेल निकालना पड़ता था।
 
अच्छा खाना नहीं होने के कारण लगभग सभी कैदियों की हालत बहुत बुरी थी ।

वीर सावरकर ने जेल में ही अपनी आवाज को बुलंद कर जेल में बंद भारतीय क्रांतिकारियों को उर्जा प्रदान की ।

सावरकर के कहने से कैदियों ने जेल सुविधाओं के लिए  भूख की हड़ताल करवाई।

उन्होंने गुप्त रूप से जेलर के खिलाफ एक शिकायत भिजवा दी जो लंदन के अखबारों में छपी जिसके कारण अंग्रेजी सरकार ने जेलर का स्थानांतरण किया ।   

अंडमान जेल में  दबाब डाल कर हिदू कैदियों का धर्म परिवर्तन करवाया जाता था।

   सावरकर ने जेल में ही कैदियों को पढ़ाना व शुद्धिकरण करना शरू किया।

  

सन 1921 में सावरकर को अंडमान जेल से  रतनागिरी जेल में लाया गया ।
1923 में रतनागिरी से महाराष्ट्र के यरवदा( पूना) जेल में लाया गया।

यरवदा जेल से दिनाँक 6 जनवरी 1924 को  इस शर्त पर रिहा किया कि आप रतनागिरी जिले से बाहर नहीं जाएंगे व  किसी भी राजनीतिक गतिविधि में शामिल नहीं रहेंगे।।

सावरकर हिंदू धर्म में व्याप्त कुरूतियों व  छुआछूत के बहुत खिलाफ थे ।
उन्होंने फरवरी 1931 में अस्पृश्यता उन्मूलन सम्मेलन की  अध्यक्षता की थी।
सावरकर ने बम्बई में  “पतित पावन” मंदिर बनवाया जिसमें जाति से निम्न समझे जानेवाले व लोगों को भी प्रवेश करवाया।

आपने हिंदू समाज की 7 बेड़ियां  स्पर्श बंदी  , रोटी बंदी, बेटी बंदी, व्यवसाय बंदी , सिंधु बंदी , वेदोक्त बंदी व शुद्धि बंदी को बताया।
आप राष्ट्रभाषा हिंदी व राष्ट्र लिपि देवनागरी बनाए जाने के पक्षधर थे

सन 1937 में कर्णावती, अहमदाबाद में हुए सम्मेलन में आपको अखिल भारतीय हिंदू महासभा का अध्यक्ष बनाया गया।
ततपश्चात आप ही इसके बाद 6 बार अध्यक्ष  रहे

आपने 15 अप्रैल 1938 को मराठी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता की ।

आपने 13 दिसंबर 1937 को नागपुर में आयोजित आम सभा को संबोधित करते हुए देश के बंटवारे के प्रस्ताव का विरोध किया।

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने 22 जून 1941 को आपसे मुलाकात की और आपने उन्हें रासबिहारी बोस के पास जापान जाने हेतु प्रेरित किया था।

आपने अक्टूबर 1942 में चर्चिल को भी तार भेजा था ।

आपको 5 अक्टूबर 1948 को महात्मा गांधी की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था परंतु कालांतर में आरोप मुक्त  कर दिया गया था ।

आपने 10 नवंबर 1957 को स्वतंत्रता संग्राम की शताब्दी पर मुख्य वक्ता के रूप में अपना भाषण दिया ।

आपको पुणे विश्वविद्यालय से 8 अक्टूबर 1959 को डॉक्टरेट की डिग्री मिली। आप लिखकर चिंतक भी थे। आपने लगभग 10000 पृष्ठ मराठी भाषा के 1500 पृष्ठ अंग्रेजी भाषा में लिखे। आपने 40 पुस्तकें लिखी थी।। मराठी भाषा में आप की कविताएं अति लोकप्रिय है

आपने  1 फरवरी 1966 को जीवन पर्यंत व्रत शुरू किया

   26 फरवरी 1996 को प्रातः 10:00 आप ने संसार से अंतिम विदाई ली।


पोर्ट ब्लेयर के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा को आपके नाम से बनाया गया ।

    भारत सरकार द्वारा आपके सम्मान में   डाक टिकट भी जारी किया गया। 

वीर सावरकर पर कॉन्ग्रेस या अन्य लोगों द्वारा एक आक्षेप यह लगाया जा रहा है की उन्होंने अंग्रेजों से माफी मांगी थी।

यह आक्षेप बिल्कुल गलत है। इस पर कोई धारणा बनाने से पूर्व हमें उस समय की परिस्थितियों को समझना होगा।

जेल की कालकोठरियों में अमानवीय यातनाएं झेलने से तो देश आज़ाद हो नहीं सकता था।

सावरकर ही नहीं भारतीय  सभी  क्रांतिकारीयों की सोच यही थी कि जेल में सड़कर मरने से अच्छा है।। किसी भी तरह से जेल से बाहर निकले और क्रांतिकारी गतिविधियों को आगे बढ़ाएं।
और क्रांतिकारी अनेक बार जेल से भागने में सफल भी रहे।

इस मामले में एकमात्र शहीदेआजम भगतसिंह की सोच अलग रही।उनके कारण उन्होंने ख़ुद बताए थे।

सावरकर द्वारा  जेल से प्रेषित की गई पेटीशन को माफीनामा नहीं कहा जा सकता।

सावरकर  बैरिस्टर थे और  कानूनी प्रावधानों से अच्छी तरह परिचित थे ।
उन्होंने अपने कानूनी अधिकारों को प्राप्त करने हेतु उपरोक्त सभी पेटीशन प्रेषित की थी।
जिन्हें आप स्वयं पढ़ सकते हैं :-

इन पेटीशन को समझने के लिए यह समझना आवश्यक है
  सावरकर को भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत दो उम्रकैद की सजा दी गई थी

भारतीय दंड संहिता की धारा 55 में उम्र कैद की अवधि की गणना करने का सूत्र दिया हुआ।
इस धारा के अनुसार उम्र कैद की अवधि अधिकतम 14 वर्ष हो सकती थी ।

उस समय  Government Resolution number 5308 (judicial department) Dated 12 October 1905 के अनुसार कैदी को हर एक वर्ष की सजा पर दो कारावास की अवधि में दो माह की छूट मिलती थी ।
जिसे र Remission Earned by convict   कहा जाता था।

सावरकर द्वारा प्रस्तुत पेटीशन में इस छूट लाभ मांगा गया है।

यही नहीं अंडमान जेल नियमों के अनुसार कैदी को कैद के 5 वर्ष पूर्ण करने के बाद उसके घरवालों से मिलने व 10 वर्ष बाद कैदी अपने घर वालों के साथ रहने के आदि आदि  छूट दी जाती थी।
जो सावरकर को नहीं दी गई थी।  अपनी पेटीशन में सावरकर ने इनका भी उल्लेख किया है।

जहाँ तक शाही घोषणा के अंतर्गत कैदियों की आम रिहाई का प्रश्न है इसे भी देखिए।

प्रथम महायुद्ध में महात्मा गांधी जी द्वारा भारतीयो को  ब्रिटिश फौज में भर्ती करवाया था ।

इसके कारण गांधीजी के आग्रह पर अंग्रेजों ने शाही घोषणा(Royal Proclamation_-Royal Amnesty to the Political Prisoners  )  जारी कर के राजनीतिक कैदियों को जेल से रिहा किया गया था।

उक्त शाही घोषणा का लाभ  सावरकर बंधुओं को नहीं दिया गया था।
सावरकर ने अपनी एक पिटिशन में  सावन में यह मुद्दा उठाया है।

सावरकर की महानता देखिए उन्होंने अपनी अंतिम दोनों पिटिशन में स्पष्ट लिखा है कि यदि उसे  रिहाई नहीं दी जाती है तो न दें कम से कम अन्य कैदियों को तो रिहा करें ।

महात्मा गांधी, सरदार पटेल  के आग्रह पर सावरकर ने अंतिम पेटीशन भेजी थी।

यह विचारणीय है कि सावरकर को उनके द्वारा प्रेषित पेटीशन के आधार पर जेल से रिहा नहीं किया गया था।


सावरकर की पेटीशन दिनाँक 12 जुलाई 1920 को अस्वीकार कर दी गई थी।

वस्तुतः श्री मोहम्मद फैयाज खान लेजिस्लेटर ने दिनांक 15 फरवरी 1921 को मुंबई लेजिसलेटिव असेंबली में सावरकर  को जेल में दी जाने वाली यातनाओं के संबंध में प्रश्न उठाया।

विट्ठल भाई पटेल ने बम्बई लेजिस्लेटिव असेम्बली में दिनांक 24 फरवरी 1920 को सावरकर बंधुओं व अन्य राजनीतिक कैदियों की रिहाई का मामला उठाया।

इसके बाद   रंगास्वामी एंकर ने दिनांक 26 मार्च 19 को बम्बई असेम्बली में  सावरकर की रिहाई हेतु 50000  (पच्चास हजार)व्यक्तियों द्वारा हस्ताक्षरित ज्ञापन रखा।

गांधीजी ने दिनाँक 25 जनवरी1920 को सावरकर के भाई नारायणराव सावरकर को पत्र लिखकर सावरकर की रिहाई हेतु प्रयत्न करने का  आश्वस्त किया व 26 मई 1920 में गाँधी जी यंग इंडिया में लेख भी छपवाना –


अंततः से जन प्रभाव के दबाव से Alexander Montgomery, Secretary Home Department  भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 401 के अंतर्गत रतनागिरी जिला से बाहर नहीं जाने व राजनीतिक गतिविधियों में भाग नहीं लेने की शर्तों के साथ सावरकर को रिहा करने के आदेश पारित  किये।

सावरकर 13 वर्ष 9 माह 13 दिन जेल में कठोर यातनाओं को झेलने के बाद रिहा हुए।

इस पुस्तक को अवश्य पढ़ें। कुछ तथ्य व चित्र इसी पुस्तक से संकलित है।
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