:- पंडित गेंदालाल दीक्षित -:
मैनपुरी एक्शन के हीरो पंडित गेंदालाल दीक्षित का जन्म 30 नवंबर 1888 को गांव मई तहसील बाह जिला आगरा में हुआ था । जब पंडित जी की आयु 3 वर्ष की थी तो उनके माता-पिता दोनों ही स्वर्ग सिधार गए ।
पंडित जी ने मैट्रिक के बाद डीएवी स्कूल औरैया में अध्यापन का कार्य शुरू किया ।
पंडित जी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक से प्रभावित थे । पंडित जी ने शुरु में “शिवाजी समिति ” बनाई थी
कालांतर में मुकुंदी लाल , दम्मी लाल , करोड़ी लाल गुप्ता, सिद्ध चतुर्वेदी, गोपीनाथ प्रभाकर, चंद्रधर जोहटी, शिवकिशन व अन्य
क्रांतिकारी शामिल हुए तो शिवाजी समिति ‘ मातृदेवी “बन गयी ।
मातृदेवी में लगभग 5000 सदस्य थे । इनके पास 500 घुड़सवार व 200 पैदल सैनिक व 8 लाख रुपये कोष में थे।
क्रांतिकारी गतिविधियों में शिक्षित लोगों का सहयोग नहीं मिला तो पंडित जी ने एक नया तजुर्बा किया व डाकुओं के साथ हाथ मिलाया पंडित जी का उद्देश्य था कि डाकुओं के साथ मिलकर डाके डाले जाए और धन एकत्रित कर हथियार खरीदे जावे संगठन को मजबूत किया जाए और डाकुओं को भी अंग्रेजों के विरुद्ध प्रेरित किया जावे।
इसी क्रम में ग्वालियर के डकैत ब्रह्मचारी जी व पंचम सिंह मातृदेवी के साथ काम करने लगे ।
एक बार गेंदालाल जी ब्रह्मचारी जी के साथ सिरसागंज के सेठ ज्ञानचंद के घर डाका डालने जा रहे थे।
दलपतसिंह नामक गदार ने ब्रह्मचारी जी को पकड़वाने का षड्यंत्र कर पुलिस को सूचना देदी।
लंबा रास्ता था इसलिए रास्ते मे खाने का प्रोग्राम बना।
किसी गदार ने खाने जहर मिला दिया। ब्रह्मचारी जी ने गदार को मारने हेतु गोली चलाई पर निशाना चूक
गया ।
पुलिस मौका पर तैयार थी । पुलिस ने चारों तरफ से घेर लिया मुठभेड़ में 35 क्रांतिकारी साथी शहीद हो गए पंडित जी की बाई आंख में छर्रा लगा जिसके कारण आंख गयी ।
इस मुठभेड़ में 50 पुलिस वाले भी मारे गए ।
पुलिस मुखविर सूचना पर छपटी में छापेमारी कर हथियार ज़ब्त किये दल के सदस्यों को गिरफ्तार किया।
इसे ही सरकारी रिकॉर्ड में मैनपुरी षड्यंत्र कहा गया वस्तुतः आजादी की लड़ाई में लिया गया एक्शन था।
मुठभेड़ में गिरफ्तारी के बाद पंडित जी को आगरा किले में जेल में रखा गया।
वहां बिस्मिल गेंदालाल जी से मिले व गुप्त योजना तैयार की जिसके अनुसार गेंदालाल जी ने सरकारी गवाह बनने की इच्छा जाहिर की।जिस पर पंडित जी को मैनपुरी लाया गया जहाँ मातृदेवी के कुछ सदस्य पहले से ही जेल में थे ।
पंडित ने पुलिस वालों को बताया कि रामनारायण से वे परिचित है व रामनारायण से मिलकर क्रांतिकारी यों के बारे में और सूचनाएं देंगे ।
चाल कामयाब हुई व पंडित जी को सरकारी गवाह रामनारायण के साथ एक ही हथकड़ी में जकड़ा गया ।
रात्री में पण्डित जी ने पुलिस को चकमा देकर सरकारी गवाह रामनारायण सहित फरार हो गए।
फ़रारी के बाद पंडित जी कोटा जाकर एक रिश्तेदार के पास रुके थे।
उस रिश्तेदार ने पंडित जी के भाई ने जो कुछ सामान और पैसे भेजे थे, उसे लेकर चपत हो गया और पंडित जी को एक कोठरी में बंद कर गया। बड़ी मुश्किल से 3 दिन बाद कोठरी को खुलवाया।
पंडित जी की हालत दयनीय थी। चार कदम भी नहीं चल सकते थे फिर भी जैसे तैसे आगरा पहुंचे किसी परिचित पास रुके उसने भी जबाब दे दिया तो पंडित जी दिल्ली पहुंचकर एक प्याउ पर नौकरी करने लगे ।
बीमारी से परेशान होकर एक साथी को सूचना दी जो पंडित जी और उनकी पत्नी को लेकर गया।
आखिरी समय में पंडित जी की हालत बहुत बुरी हो गई थी। पत्नी रोने लगी और कहने लगी मेरा इस दुनिया में कौन है।
पंडित जी ने ठंडी सांस ली और मुस्कुरा कर कहा –
आज लाखों विधवाओं का कौन है?
लाखों अनाथ हूं का कौन है ?
22 करोड़ भूखे किसानों का कौन है?
दासता की वीडियो में जकड़ी हुई भारत माता का कौन है,?
जो इन सब का मालिक है,वही तुम्हारा भी ।
तुम अपने आप को परम सौभाग्यवती समझना ,यदि मेरे प्राण इसी प्रकार देश प्रेम की लगन में निकल जावे और मैं शत्रुओं के हाथ न आऊँ। मुझे दुख है तो केवल इतना ही कि मैं अत्याचारों को अत्याचार का बदला न दे सका ,मन ही मन में रह गई। मेरा यह शरीर नष्ट हो जाएगा ,किंतु मेरी आत्मा इन्हीं भावों को लेकर फिर दूसरा शरीर धारण करेगी ।अब की बार नवीन शक्तियों के साथ जन्म ले ,शत्रुओं का नाश करूंगा ।”
पंडित जी की पत्नी के पास इतना सामान भी नहीं था कि पंडित जी के स्वर्ग सिधारने पर उनका दाह संस्कार कर सके ।
इसलिए पंडित जी को सरकारी अस्पताल में भर्ती करवा दिया। अस्पताल में दिनांक 21दिशम्बर 1920 व पंडित जी हमेशा के लिए अपना शरीर छोड़कर, आजादी की अधूरी लड़ाई को पुनर्जन्म में पूर्ण करने के प्रण सहित चले गए।
शत शत नमन उन हुतात्माओं को जो इस क़दर आत्मसमर्पित थे माँ भारती को।