:- क्रांतिवीर -: -: :-करतारसिंह सराभा -:

:- क्रांतिवीर करतार सिंह सराबां -:

करतारसिंह का जन्म 24 मई 1896 को गांव सराबा जिला लुधियाना पंजाब में हुआ। आपकी बालावस्था में ही आपके पिता श्री मंगल सिंह का निधन हो गया था।आप अपने पिता की एकमात्र पुरूष संतान थे। प्रारंभिक शिक्षा लुधियाना में व रेवनसा कॉलेज उड़ीसा से विद्यालयी शिक्षा 11वीं पास करने के बाद मात्र 16 वर्ष की आयु में उच्च शिक्षा हेतु  अमेरिका गए।  वहाँ आप सराभा गांव के रुलिया सिंह पास रहे। आप एक बुजुर्ग महिला के घर में किराएदार  थे । अमेरिका के स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर उस महिला ने  घर को फूलों व वीरो के चित्रों से सजाया । जिससे आपके मन मे देशप्रेम व आजादी की भावना की चिंगारी उठी जो कभी शांत नहीं हुई।
अमेरिका व कनाडा में अधिकतर प्रवासी भारतीय काम की तलाश में ग्रुप बना कर रहते थे । कनाडा व अमेरिका में  लोगों के  भारतीय मज़दूर काफी परेशान रहते थे। भारतीयों के साथ इस भेदभावपूर्ण व्यवहार के विरुद्ध कनाडा में संत तेजा सिंह व अमेरिका में ज्वाला सिंह संघर्ष कर थे। ये सभी पंजाबी सिख थे । ये लोग  भारत से आनेवाले  विद्यार्थियों को सहायता करते थे ।
  पोर्टलैंड में 1912 में भारतीय मज़दूरों का एक बड़ा सम्मेलन हुआ, जिसमें बाबा सोहन सिंह भकना, हरनाम सिंह टुंडीलाट, काशीराम आदि ने हिस्सा लिया।
  इस समय आप ज्वाला सिंह ठट्ठीआं के संपर्क में आये व उनकी सहायता से बर्कले विश्वविद्यालय में  रसायन शास्त्र की शिक्षा प्राप्त करने हेतु प्रवेश लिया।
यहाँ आप 1912 में लाला हरदयाल कि भाई परमानंद के संपर्क में आये व फ़िरंगियों के विरुद्ध दिए गए जोशीले भाषणो से प्रभावित हुए।
आप गदर पार्टी सदस्य बने । आप व रघुवीर दयाल ने 1 नवंबर 1913 में “गदर” समाचार पत्र का पहला अंक प्रकाशित किया।
इस अंक में आपने हिदुस्तान में फ़िरंगियों के विरुद्ध  गदर का ऐलान किया । इसका एक लेख इस प्रकार था-
हमारा नाम       :-       ग़दर
हमारा काम      :-       ग़दर
ग़दर कहां होगा :-   हिंदुस्तान में   इस पर आवश्यकता है :-
        उत्साही युवा वीर सैनिकों की उजरत   :-   मौत
इनाम     :-  शहादत
मिशन    :-  आजादी
कार्यक्षेत्र  :- हिंदुस्तान

करतार सिंह जी आजादी की अंतिम लड़ाई की तैयारी के साथ भारत आ गये ।
समस्त भारत के क्रांतिकारियों ने मिलकर एक साथ एक निश्चित तिथि पर अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध करने की योजना बनाई
इस युद्ध की तिथि 21 फरवरी 1915 निश्चित की गई ।
छावनियों में भारतीय सैनिकों से सम्पर्क के क्रम में  फिरोजपुर में  संगठन भार रासबिहारी बोस और करतार सिंह सराभा ने,जबलपुर, अजमेर ,बरेली, बनारस, दानापुर, गुवाहाटी, मेरठ व  रावलपिंडी की सैनिक छावनियों में सम्पर्क का भार  नलिनी मोहन मुखोपाध्याय, प्रताप सिंह बारठ,  दामोदर स्वरूप, शचींद्रसान्याल , नरेंद्र नाथ, विष्णु गणेश पिंगले,  तथा निधान सिंह को सौंपा गया।
हिरदेराम को जालंधर छावनी, प्यारा सिंह को कपूरथला छावनी तथा डॉक्टर मथुरा सिंह को पेशावर की छावनी में भेजा गया।
सभी छावनियों में भारतीय सैनिकों ने अंग्रेजों को मार भगाने हेतु साथ देने का विश्वास दिलाया।
  इस घटना का समाचार देश विदेश में पहुंच गया । विदेशों में ग़दर पार्टी आजादी के लिए सक्रिय थी।
विदेशों में खबर फेल गई कि अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए जंग होनेवाला है ।
इस प्रतिक्रिया में प्रवासी भारतीयों ने भी भारत आकर अंग्रेजों को भारत से मार भगाने की तैयारियों के भारत का रुख किया ।
अलग अलग जहाजों से  प्रवासी भारतीय जिनमे अधिकतम सिख व गदर पार्टी के सदस्य थे, अपने हाथों में  हथियार लिए गदर की गूंज मचाते हुए कोरिया टोषामारू, माशियामारू, कवाचिमारू सलमिस नामक व अन्य जहाजों से भारत पहुंचे। जिनकी कुल संख्या लगभग 8000 थी।
देश के गद्दार हमेशा ही देश का दुर्भाग्य बने है । इस बार भी यही हुआ एक पुलिस अधिकारी ने कृपाल सिंह नामक एक व्यक्ति को क्रांतिकारी दल में शामिल करवा दिया जो सारी खबरें अंग्रेजों को देने लगा।
भारतीय क्रांतिकारियों ने इस महान युद्ध के लिए 21 फरवरी 1915 की तिथि निश्चित करते हुए सब जगह सूचना  दे दी ।

गद्दार कृपाल सिंह ने इस की सूचना अंग्रेजों को दे दी ।
इसपर जंग की तिथी दो दिन पहले यानी 19 फ़रवरी तय की गई ।    करतार सिंह जी को ज्ञान नहीं था कि कृपालसिंह गद्दार है ।उन्होंने परिवर्तित तिथि भी कृपाल सिंह को बता दी ।जो कृपाल सिंह ने पुलिस को बतादी।
करतार सिंह जी सराबा  योजना अनुसार करीब 80 क्रांतिकारियों को लेकर निर्धारित स्थान  मेरठ छावनी में पहुंचे मजबूरन उन्हे भी वापस लौटना पड़ा ।
इस योजना के असफल होने के बाद पुनर्संगठन हेतु बाहरी सहायता प्रप्त करने के लिये करतार सिंह जी को काबुल जाना था।

करतार सिंह जी के साथ जगत सिंह वह हरनाम सिंह कुंडा थे। ब्रिटिश भारत की सीमा पार करने के बाद एक स्थान पर तीनों बैठे थे ।
करतार सिंह जी गाने लगे –
” बनी सिर शेराँ दे,
की जाणा भज्ज के”
इसका अर्थ  है की शेरों के सर पर आन पड़ी है अब भाग करके क्या जाएंगे ?
और अचानक सराभा जी ने कहा यह गीत दूसरों के लिए गाया गया या अपने लिए ?
अपने साथी देश में जेलों में पड़े हैं। हमें उन्हें छोड़कर भाग रहे है ।
और अपना इरादा बदल दिया तथा वापस भारत की ओर लौटने लगे रास्ते में सरगोधा के पास चक नंबर 5 में पुलिस ने पकड़ लिया
  लाहौर एक्शन के इस मामले में करतार सिंह जी को फाँसी सजा हुई ।
26 नवम्बर 1915 को मात्र उन्नीस साल के युवक करतार सिंह ने 6 अन्य साथियों – बख्शीश सिंह,  हरनाम सिंह,  जगत सिंह, सुरैण सिंह व भूर सिंह , सज्जन सिंह ,बख्शीस सिंह , काशीराम व विष्णु गणेश पिंगले,  के साथ लाहौर जेल में फांसी पर चढ़कर हमारी आजादी के लिए शहीद होने वालों वीरों की संख्या में 7 की व्रद्धि की।
करतार सिंह सराभा से भगत सिंह प्रेरित थे । करतार सिंह जी फ़ोटो जेब मे रखते थे ।
करतार सिंह सराभा की यह गज़ल भगत सिंह को बेहद प्रिय थी वे इसे अपने पास हमेशा रखते थे और अकेले में अक्सर गुनगुनाया करते थे –

शहीद करतार सिंह सराभा

“यहीं पाओगे महशर में जबां मेरी बयाँ मेरा,
मैं बन्दा हिन्द वालों का हूँ है हिन्दोस्तां मेरा;
मैं हिन्दी ठेठ हिन्दी जात हिन्दी नाम हिन्दी है,
यही मजहब यही फिरका यही है खानदां मेरा;
मैं इस उजड़े हुए भारत का यक मामूली जर्रा हूँ,
यही बस इक पता मेरा यही नामो-निशाँ मेरा;
मैं उठते-बैठते तेरे कदम लूँ चूम ऐ भारत!
कहाँ किस्मत मेरी ऐसी नसीबा ये कहाँ मेरा;
तेरी खिदमत में ए भारत! ये सर जाये ये जाँ जाये,
तो समझूँगा कि मरना है हयाते-जादवां मेरा.”
शत शत नमन शहीदों को

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