बसंत कुमार बिश्वास: एक शहीद क्रांतिकारी का साहस और बलिदान
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उन क्रांतिकारियों का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना देश को ब्रिटिश शासन से मुक्त करने के लिए संघर्ष किया। ऐसे ही एक महान क्रांतिकारी थे बसंत कुमार बिश्वास, जिनका जीवन साहस, संघर्ष और बलिदान का प्रतीक बन गया।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
बसंत कुमार बिश्वास का जन्म 6 फरवरी 1895 को पोरागाचा गाँव, जिला नादिया, पश्चिम बंगाल में हुआ था। उनका पालन-पोषण एक सामान्य भारतीय परिवार में हुआ, लेकिन उनके अंदर बचपन से ही देशप्रेम और क्रांति का जुनून था। इस जुनून ने उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।
रासबिहारी बोस के साथ क्रांतिकारी पथ
बसंत कुमार बिश्वास का संपर्क रासबिहारी बोस से हुआ, जो उस समय भारत के प्रमुख क्रांतिकारियों में से एक थे। रासबिहारी बोस के सानिध्य में उन्होंने ‘युगांतर’ नामक क्रांतिकारी दल में सक्रिय सदस्य के रूप में काम करना शुरू किया। इसके बाद बसंत कुमार बिश्वास ने देहरादून में रासबिहारी बोस के घर पर हरिदास के नाम से काम किया, और बाद में लाहौर में एक क्लीनिक में कंपाउंडर के रूप में कार्य किया।
क्रांतिकारी गतिविधियाँ और कार्य
बसंत कुमार बिश्वास और उनके साथियों ने कई क्रांतिकारी कार्रवाइयों को अंजाम दिया, जिनमें से सबसे प्रमुख दिल्ली और लाहौर के बम हमले थे। 23 दिसम्बर 1912 को दिल्ली में वॉयसराय हार्डिंग पर एक महिला के रूप में बम फेंका गया, और 17 मई 1913 को लाहौर में लॉरेंस गार्डन में सिविल ऑफिसर्स को उड़ाने के लिए बम फेंके गए। इन दोनों हमलों के बाद किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई, लेकिन पुलिस ने छापेमारी की और संदिग्ध व्यक्तियों को गिरफ्तार किया।
इन कार्यों में टीमवर्क का बहुत बड़ा योगदान था। किसी ने टारगेट की सूचना दी, कोई टारगेट पर बम फेंकता या गोली चलाता, और एक सहायक सुनिश्चित करता था कि कार्य पूरा हुआ या नहीं। संभवत: बसंत कुमार बिश्वास और प्रताप सिंह बारठ इन दोनों हमलों में शामिल थे और उन्होंने इन कार्रवाईयों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
गिरफ्तारी और सजा
इन क्रांतिकारी कार्यों के बाद पुलिस ने पूरे देश में छापे मारे और संदिग्ध व्यक्तियों को गिरफ्तार किया। इसी दौरान, कलकत्ता में राजा बाजार स्थित एक मकान से बम की टोपी और एक पत्र बरामद हुआ, जिसके आधार पर पुलिस ने दीनानाथ को गिरफ्तार किया। उसने अपने बयान में सब कुछ उगल दिया, जिसके चलते 26 फरवरी 1914 को बसंत कुमार बिश्वास की गिरफ्तारी हुई।
दिल्ली और लाहौर में हुए इन हमलों को लेकर दिल्ली षड्यंत्र के तहत बसंत कुमार बिश्वास और उनके साथियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। लेकिन बाद में, ब्रिटिश शासक ओ डायर द्वारा अपील किए जाने पर इन सभी को फांसी की सजा दी गई।
शहादत
बसंत कुमार बिश्वास को 11 मई 1915 को अम्बाला केंद्रीय कारागार में फांसी दे दी गई। उनकी शहादत ने यह साबित कर दिया कि भारतीय क्रांतिकारी अपने देश की आज़ादी के लिए हर प्रकार का बलिदान देने के लिए तैयार थे। उनका बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा।
आखिरकार बलिदान का मूल्य
बसंत कुमार बिश्वास ने अपने प्राणों की आहुति देकर यह सिद्ध कर दिया कि स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए केवल विचार ही नहीं, बल्कि कार्य और संघर्ष की भी आवश्यकता होती है। उनका जीवन उन सभी युवाओं के लिए प्रेरणा है जो अपने देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करना चाहते हैं।
शत-शत नमन शहीद बसंत कुमार बिश्वास को।
उनका जीवन हमारे लिए एक अमूल्य धरोहर है, जो हमें यह सिखाता है कि अपनी मातृभूमि के लिए किसी भी स्तर पर संघर्ष किया जा सकता है, चाहे वह आस्थाएँ हो, या जीवन का सर्वोत्तम बलिदान।
