– क्रांतिकारी – –श्यामजीकृष्णवर्मा-

:-क्रांतिवीर श्यामजी कृष्ण वर्मा-:

  श्यामजी कच्छ के मांडवी कस्बे के गांव बलायल के निवासी थे।आपका जन्म अपने ननिहाल में 4 अक्टूबर 1857 में हुआ था। आपने 1870 में मिडिल परीक्षा में सर्वोत्तम अंक प्राप्त किए थे ।आप आर्य समाजी थे और महर्षि दयानंद सरस्वती का अनुसरण करते थे ।
सन 1875 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के संस्कृत के अध्यापक  मोनियर विलियम्स भारत आये हुए थे श्याम जी द्वारा संस्कृत में दिये गए भाषण से प्रभावित हो मोनियर ने उन्हें   ऑक्सफोर्ड  विश्वविद्यालय में आने का निमंत्रण दिया । जब श्यामजी लंदन गए तो मोनियर ने श्यामजी को ऑक्सफोर्ड में संस्कृत का सहायक प्रोफेसर नियुक्त करवा दिया ।
वे ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में संस्कृत, गुजराती व मराठी भाषा  पढ़ाने लगे ।अध्यापन के साथ साथ  श्यामजी ने अध्ययन कर बैलियज से M.A.पास की तथा सन 1884 मे बैरिस्टर बन कर भारत लौटे।
आप ने अजमेर मे वकालत के साथ स्वराज के लिए भी प्रयत्न किए। आप सन 1884 मे नगरपालिका अजमेर के अध्यक्ष बने ।
आप मध्यप्रदेश के रतलाम ,राजस्थान के उदयपुर व गुजरात के जूनागढ़, के दीवान भी रहे।  आपने बम्बई हाई कोर्ट में वकालत भी की ।
आपके तिलक जी अच्छे संबंध थे। ।चापेकर बधुओं के एक्शन के बाद तिलक जी की गिरफ्तारी हुई ।
तत्समय की भारतीय परिस्थितियों में आपने महसूस किया कि भारतीय राजे -महाराजे ,अंग्रेजों के पिठु है । इसलिए आजादी के लिये भारत से बाहर रहकर कार्य करने का निर्णय लिया।
आप इंग्लैंड आ गए । यहाँ आपने आयरलैंड के देशभक्तों व इंग्लैंड के रेडिकल नेताओं से संपर्क किया।
श्यामजी ने भारतीय छात्रों को अध्ययन हेतु ₹6000 की दो, छात्रवृत्ति एक स्वामी दयानंद के व दूसरी हरबर्ट स्पेन्सर के नाम, देनी शुरू की।

श्री एस आर राणा ने भी महाराणा प्रताप , शिवाजी के नाम से  छात्रवृत्तियां देनी शुरू की।
श्यामजी की छात्रवृत्ति की एक शर्त होती थी  कि छात्रवृत्ति लेनेवाले छात्र अध्ययन के पश्चात अंग्रेजों की नौकरी नहीं करेंगा।
  आपने  एस आर राणा व मैडम भीकाजी कामा के सहयोग से ” इंडियन सोशियोलॉजिस्ट “ मासिक पत्रिका अंग्रेजी भाषा में  शुरू की ।
इसमें भारतीय स्वतंत्रता के पक्ष में ज़ोरदार प्रकाशन किया जाता था।

उसी समय आपने होम रुल सोसायटी की स्थापना की।जिसका लक्ष्य भारत मे भारतीयों का शासन स्थापित करना था।
आपने लंदन में अंग्रेजों के नाक के नीचे हाईगेट में एक तीन मंजिला पुराना मकान खरीद कर इसमें अपने खर्चे से छात्रावास  संचालित करना शुरू किया। और इसका नाम रखा “” इंडिया हाउस “”।

कालांतर में यही इंडिया हाउस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई का केन्द्र बना । इसी ने वीरसावरकर ,मदनलाल ढिगड़ा जैसे महान क्रांतिकारियों को जन्म दिया।
इंडिया हाउस से क्रांतिकारी लेखन होता था। भारतीय क्रांतिकारीयों को हथियार व बम्ब बनाने की कला भेजी जाती थी।

यह इंडिया हाउस ही था जिसमें अंग्रेजों की छाती पर वीर सावरकर के नेतृत्व में 10 मई 1857 की लड़ाई को प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम घोषित करते हुए इसकी वर्षगांठ मनाई गई ।
अन्ततः अंग्रेजों ने इंडिया हाउस बंद करवा दिया।
श्यामजी पेरिस गए वहाँ  मैडमभीकाजी पहले से ही “बंदेमातरम “ व “तलवार” का प्रकाशन कर रही थी।

श्याम जी ने उनके साथ वहाँ भी “इंडियन सोसियोलॉजिस्ट”,का भी प्रकाशन शुरू किया।
  श्याम जी  को 1908 में पेरिस से जिनेवा जाना पड़ा।
सन 1918 में बर्लिन व इंग्लैंड में आयोजित विद्या सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व श्यामजी ने किया था।
जब वीर सावरकर को लंदन से गिरफ्तार करके समुद्री मार्ग से भारत लाया जा रहा था।  तो सावरकर को कैद से मुक्त कराने के लिए श्याम जी वर्मा ,मैडम भीकाजी कामा व एस आर राणा ने एक योजना तैयार की थी कि फ्रांस के बंदरगाह के पास वीर सावरकर समुद्र से छलांग लगाकर तैरते हुए फ्रांस के मार्सलीज के बंदरगाह पर पहुंचेंगे और वहां से एक टैक्सी से उन्हें सुरक्षित ले जाया जाएगा। था । 

सावरकर तो योजना अनुसार गिरफ्तारी से निकलकर समुद्र में कूद कर मार्सलीज बंदरगाह पहुंचे पर  टैक्सी पहुंचने में विलंब हो गया।
प्रथम महायुद्ध  के समय श्याम जी पर  कड़ी नज़र रखी जाने लगी।वहां  सुरक्षित नहीं थे।

इसलिए श्यामजी जिनेवा चले आए। और

जिनेवा में महानक्रांतिकारी स्वतंत्रता का सपना दिल मे संजोए दिनाँक 30 /31 मार्च 1930 स्वर्ग सिधार गए ।

श्याम जी की पत्नि का भी देहान्त जिनेवा में हुआ था। दाहसंस्कार के बाद उनकीअस्थियां  जिनेवा की सेंट जॉर्ज सिमेंट्री में रखी गयी थी ।                    जो स्वतंत्रत मातृभूमि के स्पर्श की प्रतीक्षा कर रही थी । यह प्रतीक्षा 2003 में पूर्ण हुई जब गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने  स्विट्जरलैंड की सरकार से अनुरोध करके उनकी अस्थियों को भारत मंगवाया।
श्याम जी वर्मा के जन्म स्थल मांडवी में  “इंडिया हाउस ” की समान आकृति का भवन बनाकर इसका नामकरण ‘क्रांति-तीर्थ “किया गया व इसमें एक पुस्तकालय स्थापित किया गया है।

शत शत नमन

शत शत नमन
महान क्रांतिवीर को।