:-कूका आंदोलन के प्रणेता गुरु रामसिंह कूका -:

बाबा रामसिंह कूका का जन्म 3 फरवरी,1816  को भैणी नगर लुधियाना पंजाब में हुआ था। भारतीय प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 के बाद पहला बड़ा आंदोलन कूका विद्रोह था।
इसके  प्रणेता  सिखों के नामधारी पंथ के संस्थापक रामसिंह कूका थे।  
रामसिंह जी पहले महाराजा रणजीत  सिंह की सेना में रहे फिर नौकरी छोड़ कर खेतीबाड़ी में लग गये।
आप आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे लोगों में प्रेम भाव से साथ रहने, गोरक्षा करने, महिलाओं के हितों की सुरक्षा ,लड़कियों को पढ़ाने,लड़कियों की जन्मते ही हत्या नहीं करने , अंतर्जातीय विवाह, सामूहिक विवाह आदि पर बहुत जोर देते थे।
लोग आपके प्रवचनों से  प्रभावित होने लगे  धीरे-धीरे अनुयायियों की संख्या बढते बढ़ते अलग ही पंथ बन गया । आपने सिख पुरुषों की तरह स्त्रियों को भी अमृत छका कर सिखी प्रदान की गई। बिना ठाका शगुन, बारात, डोली, मिलनी व दहेज के सवा रुपये में विवाह करने की नई रीति का आरंभ हुआ।
इसे आनंद कारज कहा जाने लगा।  पहली बार 3 जून 1863 को गाँव खोटे जिला फिरोजपुर में 6 अंतर्जातीय विवाह करवा कर समाज में नई क्रांति लाई गई। सतगुरु नाम सिंह की प्रचार प्रणाली से थोड़े समय में ही लाखों लोग नामधारी सिख बन गए। आपको अनुभव हुआ की राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त किए बिना कुछ नहीं हो सकता इसलिए आपने धार्मिक उपदेश हो के साथ-साथ राजनीतिक बातों का प्रचार भी शुरू किया। आपने पंजाब को कुल 22 जिलों में विभाजित कर प्रत्येक जिले का एक अध्यक्ष नियुक्त किया ।
आपने ब्रिटेन की महारानी को भारत को शासक मानने से इंकार कर दिया व फ़िरंगियों के विरुद्ध आजादी का बिगुल बजाया ।आपने ही सर्वप्रथम अंग्रेजी शासन का बहिष्कार कर अपनी स्वतंत्र डाक और प्रशासन व्यवस्था चलायी थी। आपने अंग्रेजों की शिक्षा, अदालत ,रेल ,डाक,तार आदि सेवाओं व विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आह्वान किया।
एक बार 1871 में कूका व बुचड़ो में हुई  मुठभेड़ में कुको ने बुचड़ो को मार दिया । रामसिंह जी के निर्देश पर सभी कुको ने अमृतसर आकर  आत्मसमर्पण कर दिया। अंग्रेज अधिकारी राम सिंह जी का अपने शिष्यों पर इतना  प्रभाव देखकर घबराने लग गए ।
मकर संक्रांति 1872 को  भैणी गाँव के मेले में आ रहे एक कूका ने द मलेरकोटला में एक आदमी को कमजोर बैल पर बहुत ज्यादा भार लाद कर लेजाते देखा तो कूका ने उस आदमी को टोकाटाकी की जिस पर विवाद बढ़ गया गांव के लोगों ने कूका को पीटा व एक गाय मारकर गाय का मांस कूका के मुंह मे दे दिया।
कूका ने भैणी आकर बताया तो कूको को गुस्सा आ गया ।
रामसिंह जी ने पुलिस को सुचना दे दी की मामला अब उनके नियंत्रण में नहीं है।
बागी 154 कूको  ने मलोध किले पर कब्जा कर घोड़े व हथियार लेकर मलेरकोटला पर आक्रमण कर दिया।  महल तक पहुंच कर खजाने पर भी आक्रमण किया गया। पर विशेष कारण से कुको को मलेरकोटला से हटना पड़ा।
पटियाला के पास रढ़ गांव के जंगल में दिनाँक 29 नवम्बर, 1885 को 68 कूका वीरों को  पकड़ लिया गया ।
लुधियाना के डिप्टी कमिश्नर कॉवन  ने 17 जनवरी 1872 को इनमें से 49 कुको को मलेरकोटला में तोप के सामने खड़ा कर उड़ा दिया गया। 
गिरफ्तार किए गए कुको में एक 13 वर्ष का बच्चा किशन सिंह था। उसे देख कर आवन की पत्नी को दया आ गई और उसने कावन को बच्चे की हत्या नहीं करने हेतु कहा कॉवन ने रामसिंह जी के लिए अपशब्द बोलते हुए बच्चे को कहा तुम राम सिंह  को अपना गुरु मत मानो । यह सुनते बच्चे ने यकायक कॉवन की दाढ़ी पकड़ कर खींच दी कॉवन ने गुस्से में बच्चे के दोनों हाथ काट कर मार दिया ।
शेष 18 कुको को अगले दिन मलोध में फांसी दे दी गई  ।
दो दिन बाद गुरू रामसिंह को भी पकड़कर बर्मा की मांडले जेल में भेज दिया गया। वहां जेल में ही 1885 रामसिंह जी शहीद हुए।
अगर कूका आंदोलन अचानक नहीं भड़कता तो संभव है पंजाब से फ़िरंगियों को मार भगाने में सफल होते ।
शत शत नमन कूका वीरों को