आज़ादी दो क़दम दूर थी

आज़ादी दो कदम दूर थी
        21फरवरी 1915

भारतीय क्रांतिवीरों द्वारा समस्त भारत मे एक ही दिन आज़ादी की लड़ाई लड़ना तय कर योजना बनाई पर हमारे ही ग़द्दारों के द्वारा इसकी सूचना अंग्रेजों को देदी जिसके कारण क्रांतिकारी यह लड़ाई बिना लड़े ही हार गए।
       भारतीय क्रांतिकारी गंभीर अध्ययन के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे की देश को अंग्रेजों से आजाद कराने के लिए उनके पास आदमियों व हथियारों  की कमी है तथा हथियार खरीदने के लिए धन भी नहीं है।
क्रांतिकारीयों ने इन कमियों को दूर करने के लिए यह योजना बनाई कि ब्रिटेन के दुश्मन देशों से सहयोग लिया जावे , अंग्रेजी सेना में जो भारतीय सैनिक है उन्हें भी आज़ादी के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध  युद्ध के लिए तैयार किया जावे व धन उपार्जन हेतु अमीर लोगों व सरकारी खजानों को लूटा जाय।
समस्त तैयारी के बाद देश के समस्त  क्रांतिकारियों को एक निश्चित तिथि व समय पर अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई का आह्वान किया जावे।
युद्ध की तैयारी के क्रम में देश मे बम्ब बनाने का कारखाना लगाने के उद्देश्य से हेमचंद्र कानूनगो व  पांडुरंग एम बापथ को बम्ब बनाने की प्रक्रिया सीखने हेतु विदेश भेजा गया उन्होंने रूसी क्रांतिकारी निकोलस सर फ्रांसकी से बम बनाना सिख कर आये व भारत मे बम्ब बनाने का कारखाना लगाया। पिंगले 10 ऐसे शक्तिशाली बम्ब लेकर मेरठ  छावनी पहुंच गए थे। जिनके पकड़े जाने के बाद अंग्रेजी सरकार की रिपोर्ट थी कि इन मेसे एक बम्ब से सारी छावनी को तबाह किया जा सकता था ।
बाघा जतिन ने वीरेंद्र नाथ चट्टोपाध्याय @ चट्टो को सैनफ्रांसिस्को भेजा । चट्टोपाध्याय ने ग़दर पार्टी के सदस्यों की भारत को  हथियार भेजने हेतु जर्मन राजदूत थियोडर हेलफरीश से  सौदा किया ।
भारतीय क्रांतिकारियों के दिमाक में  यह बात स्पष्ट थी कि कहीं अंग्रेजों से पीछा छुड़ाकर  जर्मनी और जापान वालों के अधीन न हो जाए । इसलिए जर्मनी से  हथियारों की सहायता हेतु जो करार किया गया उसमें स्पष्ट लिखा गया कि हथियारों की कीमत आजादी के बाद जर्मनी को दी जाएगी ।आजादी के बाद जर्मनी का भारत पर किसी तरह का कोई दावा नहीं होगा ।जर्मन फ़ौज भारत मे प्रवेश नहीं करेगी।
संगठन व छावनियों में भारतीय सैनिकों से  सम्पर्क के क्रम में  फिरोजपुर में  संगठन भार रासबिहारी बोस और करतार सिंह सराभा को सौंपा गया ।
जबलपुर, अजमेर ,बरेली, बनारस, दानापुर, गुवाहाटी, मेरठ व  रावलपिंडी की सैनिक छावनियों में सम्पर्क का भार  नलिनी मोहन मुखोपाध्याय, प्रताप सिंह बारठ,  दामोदर स्वरूप, शचींद्रसान्याल , नरेंद्र नाथ, विष्णु गणेश पिंगले,  तथा निधान सिंह को सौंपा गया।
हिरदेराम को जालंधर छावनी, प्यारा सिंह को कपूरथला छावनी तथा डॉक्टर मथुरा सिंह को पेशावर की छावनी में भेजा गया।
सभी छावनियों में भारतीय सैनिकों ने अंग्रेजों को मार भगाने हेतु साथ देने का विश्वास दिलाया।

इस क्रांति को और बल मिला जब  कनाडा सरकार ने भारतीय लोगों को कनाडा से बाहर निकालने के लिए मजबूर कर रही थी और कामागाटामारू जहाज के कलकत्ता पहुंचने पर जहाज में सवार प्रवासी भारतीयों को बजबज में रेलगाड़ी द्वरा बलपूर्वक पंजाब लाये जाने की कोशिश की गई जिसमें  कुछ सिखों को मार दिया व कुछ को गिरफ्तार किया गया।
इस घटना का समाचार देश विदेश में पहुंच गया । विदेशों में ग़दर पार्टी आजादी के लिए सक्रिय थी।
विदेशों में खबर फेल गई कि अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए जंग होनेवाला है ।
इस प्रतिक्रिया में प्रवासी भारतीयों ने भी भारत आकर अंग्रेजों को भारत से मार भगाने की तैयारियों के भारत का रुख किया ।
अलग अलग जहाजों से  प्रवासी भारतीय जिनमे अधिकतम सिख व गदर पार्टी के सदस्य थे, अपने हाथों में  हथियार लिए गदर की गूंज मचाते हुए कोरिया टोषामारू, माशियामारू, कवाचिमारू सलमिस नामक व अन्य जहाजों से भारत पहुंचे। जिनकी कुल संख्या लगभग 8000 थी।
रासबिहारी बोस ने क्रांतिकारी चिंताकरण पिल्ले को एक जापानी पनडुब्बी से अंडमान भेजा ताकि वह वीर सावरकर अन्य क्रांतिकारियों को जेल से मुक्त कराकर भारत ले आये ।  पिल्ले बंगाल की खाड़ी जाने में सफल नहीं हो सके और उनकी पनडु्बी नष्ट कर दी गई । क्योंकि इसकी सूचना अंग्रेजों को पहले से हो चुकी थी ।

अमरीका से तोशामारू जहाज से सोहन सिंह जी , निधान सिंह जी, अरुण सिंह जी, केसर सिंह जी पंडित जगत राम हरियाणवी आदि भारत आए 29 अक्टूबर को यह जहाज कोलकाता पहुंचा परंतु पुलिस को पूर्व में खबर हो चुकी थी।जहाज भारत पहुंचते ही 173 सिखों को गिरफ्तार कर लिया गया । जिनमें से 73  तो जेल से भाग निकले ।
देश के गद्दार हमेशा ही देश का दुर्भाग्य बने है । इस बार भी यही हुआ एक पुलिस अधिकारी ने कृपाल सिंह नामक एक व्यक्ति को क्रांतिकारी दल में शामिल करवा दिया जो सारी खबरें अंग्रेजों को देने लगा।
भारतीय क्रांतिकारियों ने इस महान युद्ध के लिए 21 फरवरी 1915 की तिथि निश्चित करते हुए सब जगह सूचना  दे दी । गद्दार कृपाल सिंह ने इस कि सूचना अंग्रेजों को दे दी ।
इसपर जंग की तिथी दो दिन पहले यानी 19 फ़रवरी तय की गई । करतार सिंह जी को ज्ञान नहीं था कि कृपालसिंह गद्दार है उन्होंने परिवर्तित तिथि भी कृपाल सिंह को बता दी ।
यह खबर भी अंग्रेजों तक पहुंच गई फिर क्या होना था ?
अंग्रेजों ने छावनियों में भारतीय सैनिकों से हथियार ले लिए व क्रान्तिकारीयों की धर पकड़ शुरू हो गई ।
  क्रांतिकारियों ने  बंगाल व महाराष्ट्र के क्रांतिकारी प्रथा के अनुसार कृपालसिंह गोली मार देते तो ठीक रहता  ।
हालांकि बाद में 1931 में गदरी बाबा हरनाम सिंह ने रामशरण दास व अमर सिंह के साथ कृपाल सिंह का वध करना चाहा परंतु वह बच गया । अंततोगत्वा ग़द्दार को सजा तो मिलनी ही थी ।कुछ दिनों बाद इस गद्दार को जांबाजों ने उसके घर पर ही मार दिया । मरनेवालों का पता ही नहीं चला
उधर जर्मन काउंसलर की मार्फत हत्यारों का जहाज “मेवरिक “की भी सूचना किसी ग़द्दार ने अंग्रेजों को दे दी।
संभवतः हथियार एक अन्य जहाज Amber Larsen द्वारा लाये जाने थे व रास्ते में कहीं इस जहाज से हथियार मेवरिक में रखे जाने थे। और मेवरिक को भारत आना था।Amber Larsen जहाज वाशिंगटन में पकड़ लिया गया था।
इसी कारण यह मेवरिक को हथियार नहीं दे सका तभी मेवरिक कि बटेविया (जावा) में तलाशी ली गई तो इसमें हथियार नहीं थे।
हेनरी नामक जहाज भी मनीला में पकड़ लिया गया व हथियार उतरवा लिए गए।
एक पुस्तक में लिखेनुसार गदर पार्टी के रामचंद्र व जर्मन राजदूत ने केलिफोर्निया के सेनपेड्रो बंदरगाह से मेवरिक में हथियार भेजे थे जिसमें  25  लोग ईरानी वेशभूषा में थे ।
एक किताब में यह भी लिखा है कि रामचंद्र को  गदरी बाबा ने पार्टी हितों के खिलाफ काम करने के कारण अदालत में ही मार दिया था
    मेवरिक में हथियार M N रॉय @ नरेंद्र नाथ  भट्टाचार्य छदम नाम C Martin द्वारा लाये जाने थे जो जर्मन सहायत के पक्ष में नहीं था । फिर जब  मेवरिक की तलाशी  हुई तो उसमें हथियार नहीं थे । नरेन्द्र भी नहीं था। । यह भी कहा जाता है वो रूस भाग गए ।
कुछ भी हो भी शोध का विषय है कि मेवरिक की खबर अंग्रेजों तक कैसे पहुंची व हथियार मेवरिक में रखे गए या नहीं ????
एक ओर जहाज द्वारा श्याम (थाईलैंड)के राजदूत ने 5000 बंदूके व एक लाख रुपये नगद भेजे यह जहाज रायमंगल पहुँचना था ।  इसकी सूचना भी अंग्रेजों को दे दी गयी व  यह जहाज भी पकड़ा गया।
इसी बीच जर्मनी से हथियारों के दो और जहाज भेजे गए परंतु सूचना होने के कारण फिलीपाइन के पास पकड़ लिये गए।
बाघा जतिन हथियारों के इंतजार में थे जिसकी मुखवीरों ने सूचना दे दी । मुठभेड़ में बाघा शहीद हो गए व युगान्तर के सभी गुप्त ठिकानों पर छापे मारे गए ।
योजन के अनुसार विष्णु पिंगले 10 शक्तिशाली बम लेकर मेरठ छावनी पहुंच गए परंतु वहां भी नादिर खान नामक सहयोगी ने 23 मार्च 1915 को पिंगले को पकड़ा दिया।
करतार सिंह जी सराबा  योजना अनुसार करीब 80 क्रांतिकारियों को लेकर निर्धारित स्थान  मेरठ छावनी में पहुंच मजबूरन उन्हे भी वापस लौटना पड़ा ।
इस बीच शचींद्र बक्शी स्वंम मछुआरे के भेष में छोटी जहाज से 3 किलोमीटर समुन्द्र में गए व एक छोटे पार्सल लाने में सफ़ल रहे । इसमें इ 50 जर्मन माउजर थे।  अल्फ्रेड पार्क में मुठभेड़ के समय चंद्रशेखर आजाद के पास इन मे से ही प्राप्त एक था ।
यह सुनहरा मौका था देश को आज़ाद करवाने का जो ग़द्दारों के कारण चूक गए।
परिस्थितियों को समझिए ब्रिटेन प्रथम महायुद्ध में उलझा था। भारत से करीब 150000 सैनिक देश से बाहर लड़ने भेजे गए थे ।
भारत मे उस समय मात्र 15000 सैनिक थे और भारतीय छावनियों में सैनिकों ने क्रांति में साथ देने का विश्वास भी दिलाया हुआ था।
  ब्रिटिश सेना में पंजाब के गवर्नर ओ डायर ने स्वयं लिखा है””

प्रथम महायुद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार बहुत कमजोर हो चुकी थी हिंदुस्तान में केवल 13000 गोरी पोस्ट थी जिसकी नुमाइश बारी बारी से सारे हिंदुस्तान में करके ब्रिटिश शान को कायम रख़ने की चेष्टा की जा रही थी । ये गोरे भी बूढ़े थे। नौजवानों  तो यूरोप के क्षेत्रों में लड़ रहे थे। ऐसी स्थिति में गदर पार्टी की आवाज मुल्क तक पहुंच जाती तो निश्चय है कि हिंदुस्तान अंग्रेजों के हाथ से निकल जाता ।”””

रोना आता है हमारे राजनेताओं पर ठीक उस समय जब एक तरफ क्रांतिकारीयों ने युद्ध इस स्तर पर आज़ादी के लिए जंग की तैयारी कर रही थी ।
उस समय कांग्रेस व मुस्लिम लीग  क्या कर रही थी ।,
इसका भी उल्लेख करना है महात्मा जी बिना न्यौते के ब्रिटिश सरकार की प्रथम महायुद्ध में सहायता करने पहुंचे व सहायता की जिसके लिए 1915 में हार्डिंग ने गाँधीजी को हिन्द -ए -केसरी का खिताब दिया।यह वही हार्डिंग जो चांदनी चौक में क्रांतिकारीयों द्वारा फेंके गए बम्ब से बच गया था।प्रथम महायुद्ध में 74187 भारतीय सैनिक मारे गए थे तथा 67000 भारतीय सैनिक घायल हुए थे ।
यह कैसी अहिंसा थी?
ब्रिटिश साम्राज्यवाद को बचाने के लिए 74187 भरतीयों के प्राण लिए जा सकते है पर देश की आजदी के लिए नहीं ।
अगर बापू उस समय भारतीय सैनिकों को अंग्रेजों को देश से भगाने का आह्वान कर देते तो आजादी दूर नहीं थी ।
   कांग्रेस के 1914 में मद्रास में हुए अधिवेशन में गवर्नर ने भाग लिया। इस अधिवेशन में कांग्रेस में ब्रिटिश शासन के प्रति अटूट विश्वास होने का प्रस्ताव पारित हुआ।

मुस्लिम लीग की स्तिथि स्पष्ट हो गई जब  1913 में लखनऊ अधिवेशन में लीग अध्यक्ष मोहम्मद शफी ने अपने भाषण से मुस्लिम लीग का उद्देश्य राज भक्ति तथा मुस्लिम हित रक्षा के साथ उपयुक्त स्वायत शासन हासिल करना बताया
इससे पता चलता है मुठ्ठीभर फ़िरंगियों ने 175 वर्ष 40 करोड़ भारतीयों पर कैसे राज कर गए ।
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